Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधक-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ४१ में हेतुभूत कषायोदयजन्य जो अध्यवसाय हैं, वे कारण में कार्य का आरोप करने से अनुभागस्थान कहलाते हैं। वे अध्यवसाय असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण हैं । अतएव जितने काल में एक जीव क्रम से या अक्रम से रसबंध के समस्त अध्यवसायों में मरण को प्राप्त हो यानि प्रत्येक अध्यवसाय को क्रम से या अक्रम से मरण द्वारा स्पर्श करे, उतने काल को बादर भाव पुद्गलपरावर्तन कहते हैं।
इस प्रकार से बादर भाव पुद्गलपरावर्तन का स्वरूप बतलाने के बाद अब सूक्ष्म भाव पुद्गलपरावर्तन का स्वरूप बतलाते हैं। ___ रसबंध के हेतुभूत समस्त अध्यवसायों में क्रमपूर्वक मरण को प्राप्त करते हुए जितना काल हो, उसे सूक्ष्म भाव पुद्गलपरावर्तन कहते हैं, अर्था । कोई एक जीव जघन्य कषाय के उदय से उत्पन्न हुए अध्यवसाय में मरण को प्राप्त हुआ, उसके बाद वही जीव अनन्तकाल में भी प्रथम के निकटवर्ती दूसरे अध्यवसाय में मरण को प्राप्त हो तो वह मरण गणना में ग्रहण किया जायेगा, किन्तु अन्य-अन्य अध्यवसायों में हुए मरणों को गणना के क्रम में नहीं लिया जायेगा। तत्पश्चात् पुनः कालान्तर में दूसरे के निकटवर्ती तीसरे अध्यवसाय में मरण को प्राप्त करे तो वह मरण गिना जायेगा, परन्तु बीच-बीच में अन्य अन्य अध्यवसायों के द्वारा हुए अनन्त मरण नहीं गिने जायेंगे। यानी उत्क्रम से मरणों द्वारा हुई अध्यवसाय की स्पर्शना नहीं गिनी जायेगी, किन्तु काल गिना जायेगा। इस प्रकार अनुक्रम से रसबंध के समस्त अध्यवसायस्थानों को जितने काल में मरण द्वारा स्पर्श किया जाये, उतने काल को सूक्ष्म भाव पुद्गलपरावर्तन जानना चाहिये ।1
१ बादर सूक्ष्म भाव पुद्गलपरावर्तन के उक्त लक्षणों का सारांश यह है कि
तरतमता को लिये हुए अनुभागबंधस्थान असंज्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण हैं। उन स्थानों में से एक-एक अनुभागबंधस्थान में क्रम से या अक्रम से मरण करते-करते जीव जितने समय में समस्त अनुभागबंधस्थानों में मरण कर चुकता है, उतने समय को बादर भाव पुद्गलपरावर्तन कहते हैं तथा
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