Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधक-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ३१-३३
कुल मिलाकर अविरतसम्यग्दृष्टि जीवों के सामान्यतः बारह राज की स्पर्शना होती है।
इस प्रकार से मिश्रदृष्टि और अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों की स्पर्शना का विचार करने के बाद अब सासादनगुणस्थान वालों की बारह राज की स्पर्शना का विचार करते हैं कि
'छट्ठाए नेरइओ' अर्थात् छठी नरकपृथ्वी में वर्तमान कोई नारक' अपने भव के अन्त में औपशमिक सम्यक्त्व प्राप्त कर वहाँ से गिरकर सासादनभाव को प्राप्त होता हुआ काल करे और काल करके तिर्यंच अथवा मनुष्य भव में उत्पन्न हो, जिससे उसके पांच राजू की स्पर्शना होती है तथा सासादनगुणस्थान में वर्तमान कितने ही तिर्यंच अथवा मनुष्य मध्यलोक से ऊपर लोकान्त निष्कुट क्षेत्रों में अर्थात् सनाड़ी के अन्त में रहे हुए लोकान्त प्रदेशों में उत्पन्न होते हैं, जिससे उनके सात राजू की स्पर्शना होती है। इस प्रकार कुल मिलाकर सासादनगुणस्थानवर्ती जीवों के सामान्य से बारह राजू की स्पर्शना सम्भव है।' __ सासादनभाव को प्राप्त हुए जीवों की प्रायः अधोगति नहीं होती है, जिससे सासादनगुणस्थान को लेकर प्रायः कोई जीव अधोगति में जाते नहीं हैं, जिससे बारह राजू की स्पर्शना का प्रतिपादन किया है। कदाचित् सासादनगुणस्थान वालों की अधोगति भी हो तो अधोलोक के निष्कुटादि में भी उनकी उत्पत्ति संभव होने से चौदह राजू की स्पर्शना संभव है, परन्तु वैसा नहीं होने से बारह राज को ही स्पर्शना बताई है।
सातवीं नरकपृथ्वी का नारक सासादनगुणस्थान को छोड़कर ही तिर्यंच
में उत्पन्न होता है, इसलिए छठवीं नरकपृथ्वी को ग्रहण किया है । २ यहाँ एक जीव की अपेक्षा नहीं, किन्तु एक गुणस्थान की अपेक्षा स्पर्शना
का विचार किया जा रहा है। जिससे अनेक जीवों की अपेक्षा बारह राजू की स्पर्शना होने में कोई दोष नहीं है ।
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