Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधक - प्ररूपणा अधिकार : गाथा १३
पूर्व, उत्तर, पश्चिम दिशा के नारकों का असंख्यातगुणत्व घटित होता इसी प्रकार उत्तरोत्तर नरकपृथ्वियों की अपेक्षा भी जान लेना
है । चाहिये |
उन्हीं से उसी छठी पृथ्वी की दक्षिणदिशा में रहने वाले नारक असंख्यातगुणे हैं । इनके असंख्यातगुणे होने के कारण को पूर्व कथनानुरूप समझना चाहिये। उनसे पांचवीं धूमप्रभापृथ्वी में पूर्व, उत्तर और पश्चिम दिशा के नारक असंख्यातगुणे हैं। उनसे उसी पांचवीं नरकपृथ्वी की दक्षिणदिशा में रहने वाले नारक असंख्यात - गुणे हैं। उनसे चौथी पंकप्रभापृथ्वी की पूर्व, उत्तर और पश्चिम दिशा में रहने वाले नारक असंख्यातगुणे हैं, और उनसे उसी नरकपृथ्वी में दक्षिण दिशा के नारक असंख्यातगुणे हैं। उनसे तीसरी बालुकाप्रभापृथ्वी की पूर्व, उत्तर और पश्चिम दिशा में रहने वाले नारक असंख्यात - गुणे हैं, उनसे उसी नरकपृथ्वी में दक्षिण दिशा के नारक असंख्यात - गुणे हैं। उनसे दूसरी शर्कराप्रभापृथ्वी की पूर्व, उत्तर और पश्चिम दिशा के नारक असंख्यातगुणे हैं, उनसे उसी नरकपृथ्वी की दक्षिणदिशा में रहने वाले नारक असंख्यातगुणे हैं। उनसे पहली रत्नप्रभानरकपथ्वी की पूर्व, उत्तर और पश्चिम दिशा में रहने वाले नारक असंख्यात गणे हैं और उनसे उसी रत्नप्रभा - नरकपृथ्वी में दक्षिणदिशावर्ती नारक असंख्यातगुणे हैं । "
जिस नरक के जीव जिनसे असंख्यातगुणे होते हैं, उनके असंख्यातवें भाग वे (उस नरक के जीव) होते हैं । जैसे कि तीसरे नरक के जीवों से दूसरे नरक के जीव असंख्यातगुणे हैं, अतः तीसरे नरक के जीव दूसरे नरक के जीवों से असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । इसी से रत्नप्रभा के पूर्व, उत्तर और पश्चिम दिशा में रहने वाले नारकों के असंख्यातवें भाग शर्करा प्रभा पृथ्वी के नारक हैं। जब ऐसा है, तब पहले नरक के सभी नारकों के असंख्यातवें भाग शर्कराप्रभापृथ्वी के नारक होंगे ही ।
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१ इससे सम्बन्धित आगमपाठ परिशिष्ट में देखिये ।
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