Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह आहारक और केवलि, ये दो समुद्घात नहीं होते हैं। नरकगति में आदि के चार समुद्घात होते हैं। क्योंकि तेजोलब्धि भी न होने के कारण नारकों में तैजससमुद्घात भी नहीं हो सकता है। इसीलिये नरकगति में तैजस, आहारक और केवलि समुद्घात के सिवाय शेष चार समुद्घात माने जाते हैं। तिर्यंचगति में वैक्रियलब्धि वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय और वायुकायिक जीवों को छोड़कर शेष जीवों में आदि के वेदना, कषाय और मारणान्तिक, ये तीन समुद्घात होते हैं। इन तिथंच जीवों में वैक्रियलब्धि न होने से वैक्रियसमुद्घात का निषेध किया है। लेकिन कितने ही संज्ञो पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में देवों की तरह . पांच समुद्घात होते हैं। क्योंकि उनमें वैक्रिय और तेजोलब्धि भी संभव है और वैक्रियलब्धि वाले वायुकाय के जीवों के आदि के वेदना, कषाय, मारणान्तिक और वैक्रिय, ये चार समुद्घात पाये जाते हैं।
इस प्रकार से क्षेत्रप्ररूपणा जानना चाहिये। अब स्पर्शनाप्ररूपणा करते हैं। पहले जीवभेदों की अपेक्षा स्पर्शना का विचार करते हैं। जीवभेदापेक्षा स्पर्शना
चउदसविहावि जीवा समुग्धाएणं फुसंति सबजगं । रिउसेढीए व केई एवं मिच्छा सजोगी या ॥ २६ ॥
शब्दार्थ-चउदसविहावि-चौदहों प्रकार के, जीवा-जीव, समुग्घाएणं-- समुद्घात से, फुसंति-स्पर्श करते हैं, सबजगं-समस्त लोक का, रिउसेढीएऋजुश्रेणि द्वारा, व --- अथवा, केई-कितने ही, एवं -- इसी प्रकार, मिच्छामिथ्यादृष्टि, सजोगी ---सयोगिकेवली, या---और । __गाथार्थ - चौदहों प्रकार के जीव समुद्घात द्वारा सर्व लोक का स्पर्श करते हैं अथवा कितने ही जीव ऋजुश्रेणि द्वारा सर्व जगत का स्पर्श करते हैं। इसी प्रकार मिथ्यादृष्टि और सयोगिकेवली समुद्घात द्वारा सर्वलोक का स्पर्श करते हैं। विशेषार्थ--गाथा में सभी जीवभेदों और पहले एवं तेरहवें गुण
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