Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह
असातावेदनीयकर्म के पुद्गलों को क्षय करती है अर्थात् वेदना से विह्वल हुई आत्मा अनंतानन्त कर्मस्कन्धों से परिव्याप्त अपने आत्मप्रदेशों को शरीर से बाहर भी निकालती है । शरीर के तीन भागों में से एक भाग पोला है, जिसमें आत्मप्रदेश नहीं होते हैं, दो भाग में होते हैं । जब समुद्घात होता है तब आत्मप्रदेश एकदम चल होते हैं और वे स्वस्थान से बाहर निकलते हैं और निकले हुए उन प्रदेशों के द्वारा मुख, उदर आदि के पोले भाग और कान, कंधा आदि के बीच के भाग पूरित हो लम्बाई-चौड़ाई में शरीरप्रमाण क्षेत्रव्यापी होकर अन्तर्मुहूर्त कालपर्यन्त रहती है और उतने काल में वह आत्मा प्रभूत असातावेदनीयकर्म का क्षय करती है ।
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कषाय समुद्घात - कषाय के उदय से होनेवाला समुद्घात कषायसमुद्घात कहलाता है और वह चारित्रमोहनीय कर्मजन्य है । अर्थात् कषायसमुद्घात को करती हुई आत्मा कषायचारित्रमोहनीय के कर्मपुद्गलों का क्षय करती है और वह क्षय इस प्रकार करती है कि कषाय के उदय से समाकुल- व्याकुल, विह्वल आत्मा अपने प्रदेशों को बाहर निकालकर और उन प्रदेशों द्वारा मुख, उदर आदि पोले भाग को पूरित कर तथा कान, कन्धा आदि के अन्तर भाग को भी पूरित कर लम्बाई-चौड़ाई में शरीरप्रमाण क्षेत्र को व्याप्त कर अन्तमुहूर्त प्रमाण रहती है और उतने काल में बहुत से कषायमोहनीय के कर्मपुद्गलों का क्षय करती है ।
मारणांतिक समुद्घात - इसी प्रकार मारणान्तिकसमुद्घात के लिये भी समझना चाहिये । अर्थात् मरणकाल में होने वाला जो समुद्घात उसे मरण या मारणान्तिकसमुद्घात कहते हैं । यह आयुकर्मविषयक है और अन्तर्मुहूर्त आयु के शेष रहने पर यह समुद्घात होता है और आत्मा आयुकर्मपुद्गलों का क्षय करती है ।
वैक्रिय समुद्घात - वैक्रियशरीर का प्रारम्भ करते समय होने वाला समुद्घात वैक्रियसमुद्घात कहलाता है । यह वैक्रियशरीरनामकर्म -
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