Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधक-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ३०
इस प्रकार से अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय आदि चौदह प्रकार के जीवभेदों की सर्शना का विचार करने के बाद अब गुणस्थानों की अपेक्षा स्पर्शना का विचार करते हैं। गुणस्थानापेक्षा स्पर्शना-प्ररूपणा
मिथ्यात्वगुणस्थानवर्ती और सयोगिकेवली भगवान् सर्व जगत का स्पर्श करते हैं । जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-.. __यह पूर्व में बताया जा चुका है कि समस्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करते हैं और सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवों के मिथ्यादृष्टिगुणस्थान होता है। इसीलिये कहा है कि मिथ्यादृष्टिगुणस्थानवर्ती जीव सर्व लोक का स्पर्श करते हैं तथा सयोगिकेवली भगवान् केवलिसमुद्घात के चौथे समय में सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करते हैं । जिसका उल्लेख क्षेत्रप्ररूपणा के प्रसंग में किया जा चुका है । तदनुसार यहाँ भी समझ लेना चाहिये।
अब शेष गुणस्थानों की स्पर्शना का कथन करते हैंमीसा अजया अड अड बारस सासायणा छ देसजई। सग सेसा उ फुसंति रज्जू खोणा असंखंसं ॥३०॥
शब्दार्थ-मीसा-मिश्र, अजया-अविरतसम्यग्दृष्टि, अड अड-आठआठ, बारस-बारह, सासायणा-सासादनसम्यग्दृष्टि, छ-छह, देसजईदेशविरत, सग-सात, सेसा- शेष, उ-और, फुसंति-स्पर्श करते हैं, रज्जूराजू, खीणा-क्षीणमोहगुणस्थानवर्ती, असंखंसं-असंख्यातवें भाग को।
गाथार्थ-मिश्रदृष्टि और अविरतसम्यग्दृष्टि आठ-आठ राजू को, सासादनसम्यग्दृष्टि बारह राजू को, देशविरत छह राजू को और क्षीणमोहगुणस्थान को छोड़कर शेष गुणस्थान वाले जीव सातसात राजू को एवं क्षीणमोहगुणस्थान वाले राजू के असंख्यातवें भाग को स्पर्श करते हैं। विशेषार्थ-गाथा में दूसरे से लेकर बारहवें गुणस्थान तक के
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