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पंचसंग्रह समुद्घात द्वारा एक समय में ही प्राप्त करती है और यदि विषमश्रेणि में हो तो उत्कृष्ट से चौथे समय में प्राप्त करती है। __ इस प्रकार अपर्याप्त बादर एकेन्द्रियादि बारह प्रकार के जीव मारणान्तिकसमुद्घात द्वारा सर्व जगत का स्पर्श कर सकते हैं। यह कथन अनेक जीवों की अपेक्षा जानना चाहिये । जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव चौदह राजूप्रमाण ऊँचे लोक में व्याप्त होने से उनमें का एक भी जीव मारणान्तिकसमुद्घात द्वारा अथवा ऋजुश्रेणि द्वारा चौदह राजू को स्पर्श कर सकता है । परन्तु बादर एकेन्द्रिय आदि बारह प्रकार के जीव सर्व लोकव्यापी नहीं होने से उनमें का कोई एक जीव ऊपर ऊर्ध्वलोक के स्वयोग्य स्थान में उत्पन्न हो, अन्य जीव नीचे स्वयोग्य स्थान में उत्पन्न हो, इस प्रकार अनेक जीवों की अपेक्षा मारणान्तिकसमुद्घात द्वारा उनमें चौदह राजू वाले लोक की स्पर्शना घट सकती है तथा कितने ही सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव ऋजुश्रेणि द्वारा भी समस्त लोक का स्पर्श करते हैं।
ऋजुश्रेणि द्वारा स्पर्श कैसे करते हैं ? तो इसका उत्तर यह है कि अधोलोक में से ऊर्ध्वलोक के अन्त में उत्पन्न होने पर सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव चौदह राजू का स्पर्श करते हैं। इसी प्रकार समस्त दिशाओं के लिये जान लेना चाहिये। जिससे एक, अनेक जीवों की अपेक्षा ऋजुश्रेणि के द्वारा भी सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करते हैं ।
१ ऊर्ध्वलोक में अनुत्तर विमान के पृथ्वी पिंड में अथवा सिद्धशिला में
एकेन्द्रिय रूप से और नीचें सातवें नरक के पाथड़ों के पृथ्वीपिंड में उत्पत्ति सम्भव है। ऋजुश्रेणि द्वारा सर्व जगत का स्पर्श करते हैं, ऐसा कहने का कारण यह है कि सभी जीव मारणान्तिकसमुद्घात करें ही, ऐसा नहीं है, कोई करते हैं और कोई नहीं भी करते हैं । जो नहीं करते हैं, वे भी ऋजुगति द्वारा चौदह राजू की स्पर्शना कर सकते हैं ।
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