Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह रहती है और चौथे समय में सम्पूर्ण लोकव्यापी होती है। शास्त्र में भी कहा है
'चतुर्थे लोकपूरणमष्टमे संहार इति ।' अर्थात्-चौथे समय में अपने आत्मप्रदेशों द्वारा सम्पूर्ण लोक को पूरित-- व्याप्त करती है और आठवें समय में संहार करके शरीरस्थ होती है।
इस प्रकार से गुणस्थानों को अपेक्षा क्षेत्रप्रमाण जानना चाहिये। ऊपर यह तो कहा है कि समुद्घात में सयोगिकेवली भी सम्पूर्ण लोक व्यापी होते हैं, लेकिन समुद्घात का स्वरूप नहीं बताया है। इसलिये प्रासंगिक होने से अब समुद्घात का विवेचन करते हैं। समुद्घात-विवेचन
वेयण-कसाय-मारण-वेउविय-तेउ-हार-केवलिया । सग पण चउ तिन्नि कमा मणुसुरनेरइयतिरियाणं ॥२७॥ पंचेन्दियतिरियाणं देवाण व होति पंच सन्नीणं ।
वेउव्वियवाऊणं पढमा चउरो समुग्घाया ॥२८॥ शब्दार्थ-वेयण - वेदना, कसाय- कषाय, मारण-मारण, वेउवियवैक्रिय, तेउ-हार-तेजस, आहारक, केवलिया-कैवलिक-केवली, सग-सात, पण-पांच, चउ-चार, तिन्नि-तीन, कमा--- क्रमशः, मणु--मनुष्य, सुरदेव, नेरइय-नारक, तिरियाणं-तिर्यंचों के।
पंचेन्दियतिरियाणं-पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के, देवाण व-देवों के सदृश, होति -होते हैं, पंच-पांच, सन्नीणं--संजी, वेउटिवयवाऊणं-वैक्रियलब्धियुक्त वायुकायिक जीवों के, पढमा-प्रथम आदि के, चउरो-चार, समुग्घाया--- समुद्घात ।
गाथार्थ-वेदना, कषाय, मारण, वैक्रिय, तैजस, आहारक और केवली ये समुद्घात के सात प्रकार हैं। उनमें से मनुष्य, देव, नारक और तिर्यंचों में अनुक्रम से सात, पांच, चार और तीन होते हैं तथा किन्हीं किन्हीं संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में देवों की तरह पांच
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