Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधक - प्ररूपणा अधिकार : गाथा २१
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संख्या से उसी संख्या का गुणा करने पर एक लाख चौरासी हजार चार सौ सड़सठ कोडाकोड, चवालीस लाख सात हजार तीन सौ सत्तर करोड़ पंचानवं लाख, इक्यावन हजार, छह सौ सोलह (१८४४६७४४०७३७६५५१६१६ ) होता है, यह छठा वर्ग है ।
इन छह वर्गों में से छठे वर्ग का पांचवें वर्ग के साथ गुणाकार करने पर जितनी प्रदेशराशि हो, उतने जघन्य से गर्भज पर्याप्त मनुष्य होते हैं ।
पांचवें और छठे वर्ग के गुणाकार के उनतीस अंक होते हैं ।' जो इस प्रकार हैं- ७६२२८१६२५१४२६४३३७५६३५४३६५०३३६ ।
९ गर्भज मनुष्यों की संख्या के द्योतक ये उनतीस अंक अक्षरों के संकेत द्वारा गोम्मटसार जीवकांड, गाथा १५८ में इस प्रकार बतलाये हैं
तललीन मधुग विमलं धूम सिलागाविचारभयमेरु ।
तटहरिखझसा होंति हु माणुसपज्जत्तसंखंका ||
अर्थात् तकार से लेकर सकार पर्यन्त अक्षर प्रमाण अंक पर्याप्त मनुष्यों की संख्या है ।
किस अक्षर से कौनसा अंक ग्रहण करना चाहिये, इसके लिये निम्नलिखित गाथा उपयोगी है
कटपयपुरस्थवर्णैर्नवनवपंचाष्टकल्पितैः क्रमशः ।
स्वरननशून्यं संख्यामात्रोपरिमाक्षरं त्याज्यम् ॥
अर्थात् क से लेकर झ तक के नौ अक्षरों से क्रमशः एक, दो, तीन आदि तक के नौ अंक समझना चाहिये। इसी प्रकार ट से लेकर नौ अंक, पसे लेकर पांच अंक, य से लेकर आठ अक्षरों से आठ अंक तथा स्वर, ञ, न से शून्य समझना चाहिये । मात्रा और उपरिम अक्षर से कोई भी अंक ग्रहण नहीं करना चाहिये | अतः इस नियम और 'अंकों की विपरीत गति होती है' नियम के अनुसार गाथा में कहे हुए अक्षरों से पर्याप्त मनुष्यों की संख्या ७६२२८१६२५१४२६४३३७५६३५४३६५०३३६ निकलती है ।
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