Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह उपशमक और उपशांतमोही ये दोनों प्रकार के जीव उपशमश्रेणि में अन्तर पड़ने के कारण किसी समय होते हैं और किसी समय नहीं होते हैं । जिससे उपशमक आठवें, नौवें और दसवें गुणस्थानवर्ती तथा उपशांत-उपशांतमोहगुणस्थानवर्ती जीव जब होते हैं, तब जघन्य से एक, दो या तीन और उत्कृष्ट चउवन होते हैं-'एगाइ चउप्पण्णा' । यह प्रमाण प्रवेश करने वालों की अपेक्षा जानना चाहिये, यानि इतने जीव एक समय में एक साथ :उपशमश्रेणि सम्बन्धी अपूर्वकरणादि गुणस्थानों में प्रवेश करते हैं। किन्तु उपशमश्रेणि के सम्पूर्ण काल की अपेक्षा विचार करें तो कुल मिलाकर भी संख्यात जीव ही होते हैं। तात्पर्य यह हुआ कि उपशमश्रेणि का काल अन्तमुहूर्त प्रमाण है और उस समस्त काल के उत्तरोत्तर समयों में अन्य-अन्य जीव भी यदि प्रवेश करें तो कुल मिलाकर वे सभी जीव संख्यात ही होंगे।
प्रश्न-उपशमणि के अन्तमुहूर्त प्रमाणकाल के असंख्यात समय होते हैं और उस काल के एक-एक समय में एक-एक जीव भी प्रवेश करे, तब भी श्रेणि के सम्पूर्ण काल में असंख्यात जीव सम्भव हैं, तो फिर दो-तीन से लेकर उत्कृष्टतः चउवन तक की संख्या प्रवेश करे तो असंख्यात जीव क्यों नहीं होंगे? होंगे ही। तब ऐसा कैसे कहा जा सकता है कि उपशम श्रेणि के समस्त काल की अपेक्षा भी संख्यात जीव होते हैं ?
उत्तर--उक्त प्रश्न और कल्पना संगत नहीं है। क्योंकि उक्त कल्पना तभी की जा सकती है, जब श्रेणि के अन्तर्मुहूर्त काल में प्रत्येक समय जीव प्रवेश करते ही हों। परन्तु प्रत्येक समय तो जीव प्रवेश करते नहीं हैं, कुछ एक समयों में करते हैं, जिससे उक्त संख्या घटित होती है।
प्रश्न-अन्तमुहूर्तप्रमाण श्रेणि के काल के कुछ एक समयों में ही
१ अंतर का उल्लेख आगे अंतर-प्ररूपणा के प्रसंग में स्पष्ट किया जायेगा।
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