Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधक-प्ररूपणा अधिकार : गाथा २१-२२ सोलह छेदनक, पांचवें वर्ग के बत्तीस छेदनक और छठे वर्ग के चौंसठ छेदनक होते हैं। गर्भज मनुष्यों की संख्या पांचवे और छठे वर्ग के गुणाकार जितनी होने से उस संख्या में पांचवें और छठे इन दोनों वर्गों के छेदनक आते हैं। पांचवें वर्ग के बत्तीस और छठे वर्ग के चोंसठ छेदनक होने से दोनों का जोड़ करने पर छियानवै छेदनक पूर्वोक्त राशि में होते हैं।
प्रश्न-यह कैसे जाना जा सकता है?
उत्तर-जिस-जिस वर्ग का जिस-जिस वर्ग के साथ गुणाकार करें और गुणाकार करने पर जो संख्या प्राप्त हो, उसमें दोनों वर्ग के छेदनक घटित होते हैं। जैसे कि पहले वर्ग को दूसरे वर्ग के साथ गुणा करने पर जो संख्या प्राप्त होती है, उसमें पहले वर्ग के दो और दूसरे के चार कुल छह छेदनक संभव हैं । जो इस प्रकार जानना चाहिये
पहले और दूसरे वर्ग का गुणाकार चोंसठ होता है । उनका पहला छेदनक बत्तीस, दूसरा सोलह, तीसरा आठ, चौथा चार, पांचवां दो और छठा एक, इस तरह छह छेदनक होते हैं। इसी तरह अन्यत्र भी जानना चाहिये । जिससे पांचवें और छठे वर्ग के गुणाकार में पांचवें वर्ग के बत्तीस और छठे वर्ग के चोंसठ, दोनों मिलकर छियानवें छेदनक होते हैं।
गर्भज और संमूच्छिम अपर्याप्त जीव किसी समय होते हैं और
पर्याप्त मनुष्यों की उक्त जघन्य संख्यासम्बन्धी समग्र कथन का सारांश यह है कि पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से गर्भज मनुष्य दो प्रकार के हैं । उनमें से अपर्याप्त मनुष्य तो कभी होते हैं और कभी नहीं होते हैं। इसलिये जब वे न हों तब भी जघन्य से पर्याप्त गर्भज मनुष्य पांचवें और छठे वर्ग के गुणाकार करने से प्राप्त संख्याप्रमाण अर्थात् २६ अंकप्रमाण हैं । अथवा तीसरे यमलपद से ऊपर और चौथे यमलपद से नीचे की संख्याप्रमाण हैं । अथवा एक की संख्या को अनुक्रम से छियानवै बार
द्विगुण-द्विगुण करने पर जो संख्या प्राप्त हो, उतने हैं। -सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only
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