Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह शब्दार्थ-अहवा-अथवा, एक्कपईया-एक-एक पद के, दो-दो, भंगा- भंग, इगिबहुत्तसन्ना-एकत्व और बहुत्व संज्ञा वाले, जे–जो, ते च्चिय- उन्हीं को, पयवुड्ढीए-पद की वृद्धि में, तिगुणा-तिगुना करके, दुगसंजुया-दो को मिलाने पर, भंगा-- भंग ।
गाथार्थ—अथवा एकत्व और बहुत्व संज्ञा वाले एक-एक पद के जो दो-दो भंग होते हैं, उनको पद की वृद्धि में तिगुना करके दो को मिलाने पर कुल भंग होते हैं। विशेषार्थ-पूर्व में प्रत्येक पद के भंग निकालने की जो विधि बतलाई है, उससे भिन्न दूसरे प्रकार की विधि यह है कि
जब आठ में से कोई भी एक गुणस्थान हो तब उसके एक और अनेक के भेद से दो-दो भंग होते हैं। जैसे कि जब एक सासादन गुणस्थान में ही जीव हों, अन्यत्र सात गुणस्थानों में जीव न हों और उसमें भी किसी समय एक हो, किसी समय अनेक हों, इस तरह एक-अनेक के भेद से दो भंग होते हैं । इस प्रकार एक-एक पद के दो-दो भंग हुए । ___ अब इस नियम के अनुसार दो, तीन आदि पद के एक-अनेक के होने वाले भंगों को जानने की विधि बतलाते हैं कि जितने पद के एक-अनेक के भंग जानने की इच्छा हो, उससे पहले के पद की भंगसंख्या को तिगुना करके उसमें दो जोड़ देना चाहिये, जिससे इच्छित पद की भंगसंख्या प्राप्त होती है। जैसे कि दो पद की संख्या निकालनी हो, तब उससे पूर्व की भंगसंख्या जो दो है, उसे तिगुना करके दो जोडने पर दो के भंगों की आठ संख्या प्राप्त होती है।
यदि तीन पद की भंगसंख्या जानना हो, तब उससे पूर्व के दो पद के आठ भंगों को तिगुना करके उसमें दो को मिलाने पर तीन पद के एक-अनेक की भंगसंख्या छब्बीस प्राप्त होती है तथा इसी प्रकार छब्बीस को तिगुना करके उसमें दो को मिलाने पर चार पद के अस्सी भंग हो जाते हैं।
इसी विधि से पांच पद के दो सौ बयालीस, छह पद के सात सौ
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