Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह एक और तीसरे पर अनेक होते हैं, ३-किसी समय दूसरे पर अनेक और तीसरे पर एक होता है, ४-किसी समय दूसरे और तीसरे दोनों पर अनेक होते हैं। इस प्रकार विचार करने पर दो पद के चार हो विकल्प होते हैं, किन्तु अधिक नहीं होते हैं। अतएव दो पद के आठ भंग सम्भव नहीं हैं।
उत्तर-अभिप्राय न समझने के कारण उक्त प्रश्न अयुक्त है। क्योंकि सासादन और मिश्र ये दोनों गुणस्थान सदैव अवस्थित हों और मात्र भजना एक-अनेकत्व की अपेक्षा ही हो तो तुम्हारे कथनानुसार दो पद के चार भंग होंगे। परन्तु जब सासादन और मिश्र इन दोनों का स्वरूप से ही विकल्प है कि किसो समय सासादन होता है और किसी समय मिश्र एवं किसी समय दोनों होते हैं। अतएव उनमें से जब केवल सासादन हो और उसके एक-अनेक की अपेक्षा दो, इसी प्रकार मिश्र के भी दो और दोनों युगपत् हों तब चार, इस तरह दो पद के आठ भंग होते हैं। _इसी प्रकार जब तीन पद के भंगों का विचार किया जाये, तब तीन पद से पहले के दो पद के आठ भंग होने से आठ को दो से गुणा करके उसमें दो मिलायें और जिन आठ के साथ गुणा किया है उन आठ को भी मिलाया, जिससे तीन पद के कुल छब्बीस (८x२ = १६+२+८ -२६) भंग हुए। ये छब्बीस भंग तीसरे बिन्दु के ऊपर रखना चाहिये। ___ अब चार पद के भंगों की संख्या बतलाते हैं-पूर्व के तीन पद की भंगसंख्या छब्बीस के साथ दो का गुणा करने पर बावन हुए। उनमें गुणा करने वाली राशि और जिसमें गुणा किया गया ऐसे पिछले छब्बीस और दो भंग मिलाने पर अस्सी (२६४२%५२+२६ +२=८०) भंग हुए। इन चार पद के भंगों को चौथे बिन्दु के ऊपर रखना चाहिये।
अब पांच पद के भंगों का निर्देश करते हैं-चार पद के पूर्वोक्त
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