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परिचयात्मक
जैन समाज में चौरासी उपजातियों के अस्तित्व का उल्लेख मिलता है । इन चौरासी जातियों में पद्मावतीपुरवाल भी एक उपजाति है, जो आगरा, मैनपुरी, इटावा, फिरोजाबाद, एटा, ग्वालियर आदि स्थानों एवं इन जिलों से संबंधित कुछ ग्रामों में रहती है। पद्मावतीपुरवाल जाति जनसंख्या की दृष्टि से कम न होने पर भी आर्थिक दृष्टि से अधिक विकसित नहीं हो पाई, पर इसमें भारतवर्षीय स्तर के अनेक ख्याति प्राप्त प्रतिष्ठित विद्वान और कुछ आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न महानुभाव भी पाये जाते हैं । वे आज भी समाज सेवा कार्य में लगे हुए हैं। इस जाति के कुछ विद्वान अपना उदय ब्राह्मणों से बतलाते हैं और अपने को देवनन्दी (पूज्यपाद) का सन्तानीय भी प्रकट करते हैं। पर यह अभी शोध का विषय है। प्रसिद्ध इतिहासकार डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल द्वारा रचित ' खंडेलवाल जैन समाज के वृहद इतिहास में पूज्यवाद (देवनन्दी) को पद्मावती पोरवाल जाति का बताया है।
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जाति और गोत्रों का अधिकांश विकास अथवा निर्माण गांव, नगर और देश आदि के नाम से हुआ है। उदाहरण के लिए सांभर के आस-पास बघेरा स्थान से बघेरवाल, पाली से पल्लीवाल, खण्डेला से खण्डेलवाल, अग्रोहा से अग्रवाल, जायस अथवा जैसा से जैसवाल और ओसा से ओसवाल जाति का विकास हुआ है तथा चन्देरी के निवासी होने से चन्देरिया, चन्द्रवाड से चांदवाड और पद्मावती नगरी से पद्मावतिया आदि
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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