Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुराण
१२॥
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उदार चित्त तपस्वी त्यागी विवेकी श्राचारी लोग बसेंहैं, मुनि विचरे हैं, श्रार्थिका विहार करे हैं उत्तम श्रावक, श्राविका बसे हैं शरद की पूर्णमासी के चन्द्रमा समान है चित्त की वृति जिन की मुक्ता फैल समान उज्वल हैं श्रानन्त्र के देने हारे हैं; और वह देश बड़े २ गृहस्थीन, कर मनोहर है कैसे हैं गृहस्थी कल्पवृक्ष समान हैं तृप्त की हैं अनेक पथिक जिन्होंने जहां अनेक शुभ ग्राम हैं जिनमें भले भले किसान बसे हैं और उस देश विषे कस्तूरी कपूरादि सुगन्ध द्रव्य बहुत हैं और भांति भांति के वस्त्र आभूषणों कर मण्डित नरनारी विचरेहैं मानो देव देवी ही हैं, जहां जैन वचन रूपी अंजन ( सुरमा ) से मिथ्यात्व रूपी दृष्टि विकार दूर होवे है और महा मुनियों को तप रूपी अभि से पाप रूपी बन भस्म होय है ऐसा धर्म रूपी महा मनोहर मगध देश बसे है ॥
मगधदेश में राजगृह नामा नगर महा मनोहर पुष्पों की बासकर महा सुगन्धित अनेक सम्पदा कर भरा है मानो तीन भवनका योबनही है और वह नगर इन्द्रके नगर समान मनका मोहनेवाला है इन्द्र के नगरमें तो इंद्राणी कुंकुम कर लिप्त शरीर विचरे हैं और इस नगर में राजा की रानी सुगन्ध कर लिप्त विचरे हैं, महिषी ऐसा नाम रानी का है और भैंसका भी है सो जहां भैंसभी केसर की क्या में लोटकर केसर सों लिप्तभई फिरे हैं और सुन्दर उज्ज्वल घरों की पंक्ति और टांचीनके घड़े हुऐ सफेद पाषाण तिनसे मकान बने हैं मानो चन्दकान्ति मणिन का नगर बना है मुनियों को तो वह नगर तपोन भासे है, [मालूम होता है ] वेश्या को काम मन्दिर, नृत्यकारनी को नृत्यका मन्दिर और बैरीको यम पुर है, सुभटको वीरका स्थान, याचकको चिन्तामणी, विद्यार्थीको गुरु गृह गीत शास्त्रके पाठीको गंधर्व
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