Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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रस के भरे तृण तिन को चरकर गाय भस पुष्ट होय रही हैं, और श्याम सुन्दर हिरण हजारों विचरे हैं मानो इन्द्र के हजारों नेत्र हीहैं. जहां जीवन को कोई बाधा नहीं जिन धर्मियों का राज्य है और बनके प्रदेश केतकी के फूलों से धवल होरहे हैं, गंगा के जल के समान उज्वल बहुत शोभायमान हैं और जहां केसर की क्यारी अति मनोहर हैं और जहां ठौर और नारियल के वृक्ष हैं और अनेक प्रकार के शाक पत्र से खेत हरित होरहे हैं और बनपाल नर मेवादिक का आस्वादन करे हैं, .
और जहां दाड़म के बहुत वृक्ष हैं जहां सूवादि अनेक पक्षी बहुत प्रकार के फल भक्षण करें हैं, जहां। बंदर अनेक प्रकार किलोल करहैं, विजोन के वृत्त फल रहे हैं बहुत स्वाद रूप अनेक जाति के फल । | तिनका रस पीकर पक्षी सुख सों सोय रहेहैं. और दाख के मण्डप छाय रहेहैं. जहां वन विषे देव विहार करें, जहां खजूर को पायक भक्षण करे, कलाकेबन फल रहे हैं । ऊंचे ऊंचे अरजुन वृचोंके बन सोहेहैं
और नदीके तट गोकुल के शब्द से रमणीक हैं, नदियों में पची के समूह किलोल करेहें, तरङ्ग उठेहैं मानो नदी नृत्य ही करे हैं और हंसन के मधुर शब्दों मानो नदी गान ही करेहें, जहां सरोवर के तीर पर सारस क्रीड़ा करे हैं और वस्त्र आभरण सुगन्धादि सहित मनुष्यों के समूह तिष्ठहैं, कमलों के समूह छल रहे हैं और अनेक जीव क्रीड़ा करेहें, जहां हंसों के समूह उत्तम मनुष्यों के गुणों समान उज्ज्वल सुन्दर शब्द सुन्दर चालवाले तिनकर बन धवल होयरहाहै । जहां कोकिलों का रमणीक
शब्द और भंवगे का गुञ्जार मोगेंके मनोहर शब्द संगीत की ध्वनि बीन मृदङ्गों का बजना इनकर |दों दिया रमणीक होरही हैं औरवह देश गुणवन्त पुरुष से भराहै, जहां दगावान् क्षमावान् शीलवान
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