Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
18...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में मुनि कल्पत्रेपादि अनुष्ठान को विधिपूर्वक कर चुका हो और जिसके सभी सूत्रों के योग पूर्ण हो गए हो वही मूल ग्रन्थ, नन्दी, अनुयोगद्वार आदि सूत्रों की वाचना देने में योग्य है।17 आचार्य वर्धमानसूरि ने योगोद्वहन करवाने वाले गुरु को ही वाचना दान के योग्य स्वीकार किया है। योगोद्वहन योग्य गुरु के लक्षण योगविधि अधिकार में कहेंगे।18 वाचना आदान-प्रदान के शास्त्रीय लाभ ___ भाष्यकार संघदासगणि ने वाचना देने-लेने के पाँच लाभ बतलाये हैं19 -
1. संग्रह - वाचना दान-ग्रहण से श्रुत सम्पन्नता बढ़ती है तथा श्रुत सम्पन्नता से शिष्यों की वृद्धि भी सुगमतापूर्वक होती है।
2. उपग्रह - श्रुतज्ञान के दान से संघ का उपकार होता है। 3. निर्जरा - ज्ञानावरणीय आदि कर्मों की निर्जरा होती है। 4. श्रुतपर्यवजात - श्रुत के विविध अर्थों का बोध होता है। 5. अव्यवच्छित्ति - जैन संघ की श्रुत परम्परा अविच्छिन्न रहती है। वाचना देने-लेने से निम्न गुणों की भी प्राप्ति होती है -
1. आत्महित होता है 2. परहित होता है 3. गुरु और शिष्य दोनों का हित होता है 4. एकाग्रता में अभिवृद्धि होती है। यदि वाचक और श्रोता श्रुतसागर की गहराई में उतर जाए तो चैतसिक चंचलता का निरोध हो जाता है 5. श्रुत और अर्हत परमात्मा के प्रति बहुमान पैदा होता है तथा आर्य वज्र स्वामी की भांति विश्व में कीर्ति फैलती है। इसके अतिरिक्त गुरु-शिष्य में एक-दूसरे के प्रति किसी तरह की आशंका या सन्देह बना हुआ हो तो वह दूर हो जाता है। गुरु के प्रति शिष्य का समर्पण-भाव बढ़ता है। साथ ही शिष्य के प्रति गुरु के वात्सल्य भाव में भी अभिवृद्धि होती है। नये-नये सिद्धान्तों का श्रवण करने से विशिष्ट प्रकार का ज्ञानार्जन होता है। संयम निष्ठा बलवान बनती है। सहवर्ती मुनियों से मधुर सम्बन्ध स्थापित होता है तथा स्वाध्याय के विविध रूपों का अभ्यास होता है। योग्य शिष्य को वाचना देने के फायदे
आचार्य हरिभद्र ने वाचना इच्छुक शिष्य के जो गुण बताये हैं उन गुणों से युक्त शिष्य को वाचना देने पर निम्न लाभ होते हैं20 -