Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 270
________________ 212... पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में शिक्षित करते हैं। वे सदैव संघ के आचार-मार्ग और विचार - मार्ग की रक्षा में प्रयत्नशील रहते हैं। इस प्रकार गच्छ की रक्षा करते हुए संसार के जीवों का मार्गदर्शन करते रहते हैं। वे हर परिस्थिति को धैर्य पूर्वक सहते हैं और अपने कर्त्तव्यपालन में सतत जागरूक रहते हैं, इसीलिए आचार्य को भगवान भी कहा जाता है और प्रभु भी कहा जाता है। आचार्य इस संसार में भगवान के नाम से प्रसिद्ध हैं क्योंकि तीर्थङ्कर परमात्मा के बाद शासन की रक्षा वे ही करते हैं। नियमतः अरिहन्त परमात्मा शासन की स्थापना करते हैं, परन्तु उस शासन को आचार्य सम्हालते हैं। जैसे भगवान महावीर स्वामी मोक्ष पधार गये, उनके पश्चात सुधर्मा स्वामी ने शासन को सम्हाला । वीर प्रभु के शासन में मुख्य ग्यारह गणधर थे, उनमें आचार्य सुधर्मा उस समय छद्मस्थ थे तथा सभी शिष्यों में बड़े थे अतः उन्होंने शासन की बागडोर को थामा। आज उन्हीं आचार्य की पाट - परम्परा प्रवर्तित है। इस प्रकार आचार्य शासन नियन्त्रक, संघ उन्नायक एवं शिष्य प्रगतिकारक होते हैं तथा चतुर्विध संघ का आध्यात्मिक विकास उनका परम लक्ष्य होता है। जैन आम्नाय में लगभग सभी धार्मिक क्रियाएँ आचार्य भगवान के समक्ष की जाती हैं। यदि आचार्य का साक्षात सान्निध्य प्राप्त न हो तो उनकी स्थापना की जाती है जिसे स्थापनाचार्य कहते हैं। इस तरह आचार्य का महत्त्व अनेक दृष्टियों से सिद्ध है। सन्दर्भ सूची 1. चर गतिभक्षणयोः आङ्-पूर्वः । - आचर्य्यते कार्य्यार्थिभिः सेव्यते इत्याचार्य्यः । अभिधानराजेन्द्रकोश, भा. 2, पृ. 329 2. आचर्य्यते असावाचार्य्य सूत्रार्थावगमार्थं मुमुक्षुभिरासेव्यते इत्यर्थः । वही, भा. 2, पृ. 329 3. आ-मर्य्यादया तद्विषयविनयरूपया चर्य्यन्ते - सेव्यन्ते जिनशासनार्थोपदेशकतया तदाभिरित्याचार्य्याः। (क) भगवतीवृत्ति, पृ. 3 (ख) अभिधानराजेन्द्रकोश, भा.2, पृ. 329

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