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252...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में और अन्य साध्वियों में भी इस पद का प्रवर्तन करना ऐसा आशीर्वाद प्रदान करें।
4. फिर एक खमासमण देकर कहे - 'इच्छामो अणुसटुिं' - मैं प्रवर्तिनी पद विषयक हितशिक्षा की इच्छा करती हूँ।
5. पुन: एक खमासमण द्वारा वन्दन करके कहे - 'तुम्हाणं पवेइयं, संदिसह साहूणं पवेएमि' - मैं प्रवर्तिनीपद की अनुज्ञा के बारे में आपको बता चुकी हूँ, अब आपकी अनुमति से चतुर्विधसंघ में इसकी जानकारी देती हूँ।
उसके पश्चात प्रत्येक प्रदक्षिणा में एक-एक नमस्कार का स्मरण करते हुए गुरु और समवसरण की तीन प्रदक्षिणा दें। उस समय गुरु 'नित्थारपारगो होहि, गुरुगुणेहिं वुड्डाहि' - संसार सागर से पार होना और महान गुणों के द्वारा वृद्धि को प्राप्त करना- ऐसा कहते हुए उसके मस्तक पर तीन बार वासदान करें और उपस्थित चतुर्विध संघ अक्षत उछालें।
6. उसके बाद पुन: एक खमासमणसूत्र द्वारा वन्दन करके कहे - 'तुम्हाणं पवेइयं, साहणं पवेइयं, संदिसह काउस्सग्गं करेमि' - मैंने इस पदानुज्ञा के सम्बन्ध में आपको सम्यक प्रकार से कह दिया है, चतुर्विध संघ को भी इसकी जानकारी दे दी, अब आपकी अनुमति से इस पद के स्थिरीकरण निमित्त कायोत्सर्ग करती हूँ।
7. तदनन्तर एक खमासमण पूर्वक 'पवत्तिणीपयथिरीकरणत्यं करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थसूत्र' बोलकर एक लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में पुनः लोगस्ससूत्र कहें।
आसन एवं मन्त्रदान - तत्पश्चात नूतन प्रवर्तिनी एक खमासमण देकर कहे - 'इच्छाकारेण तुन्भे अहं निसिज्जं समप्पेह' - हे भगवन्! आपकी इच्छा हो तो मुझे आसन समर्पित करें। तब गुरु आसन को अभिमन्त्रित कर एवं उसके ऊपर चन्दन का स्वस्तिक करके उसे प्रदान करें। नूतन प्रवर्तिनी आसन
को मस्तक से लगाते हुए उसे बहुमानपूर्वक ग्रहण करें। फिर आसन को धारण किये हुए गुरु की तीन प्रदक्षिणा दें। उसके बाद शुभ लग्न का समय आने पर गुरु चन्दन से पूजित प्रवर्तिनी के दायें कर्ण में तीन बार वर्धमानविद्या मन्त्र सुनाएं। वह मन्त्र निम्न है - ___"ॐ नमो भगवओ अरहओ महइ महावीर वद्धमाणसामिस्स सिज्झउ मे भगवड महड महाविज्जा ॐ वीरे-वीरे, महावीरे, जयवीरे, सेणवीरे,