Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 321
________________ पदारोहण सम्बन्धी विधियों के रहस्य... 263 · पूर्वकाल में बहुमान प्रकट करने के लिए राजा एवं श्रेष्ठियों द्वारा मोती आदि से बधाने का वर्णन आता है उस स्थिति में सामान्य जनता के मन में खेद उत्पन्न न हो इस हेतु से चावल जो कि सभी के लिए सहज उपलब्ध है उसका विधान किया गया होगा। अक्षतों का निक्षेप करने से आचार्य एवं गृहस्थ दोनों के उत्साह एवं प्रमोद भावों में वृद्धि होती है। * इसमें गृहस्थ द्वारा उपयोग एवं विवेक रखा जाना चाहिए कि वे अधिक चावल नहीं उछालें और कार्यक्रम समाप्ति के बाद उन्हें तुरन्त उठवा दें जिससे कि पैरों में न आए। पदारोहण के दिन नूतन आचार्य के द्वारा दाहिने हाथ में स्वर्ण कंकण एवं मुद्रिका धारण करने का क्या रहस्य है ? मुनि के लिए आचार्य पदग्रहण पुनर्दीक्षा के समान है। आचार्य पद के अनन्तर उसके आचार पालन की संहिताओं में वृद्धि होती है। साथ ही आचारविचार एवं दायित्व भी बदलते हैं। कई बार नाम परिवर्तन भी किया जाता है। इस प्रसंग पर उनके तन एवं मन दोनों का शुद्धिकरण होना आवश्यक है । मन्त्र आदि के द्वारा भाव शुद्धि की जाती है तथा शरीर शुद्धि के द्वारा द्रव्य शुद्धि की जाती है और द्रव्य भाव में सहायक बनता है। • एक नवीन जीवन प्रारम्भ करने से पूर्व दुष्कृत मल आदि का निष्कासन हो जाए इस हेतु से भी शुद्धिकरण किया जाता होगा। • कंकण एवं मुद्रिका आदि धारण करने का जो उल्लेख है, यह यतिपरम्परा का प्रभाव मालूम होता है । ५वीं - ६ठीं शती के बाद यतियों का प्रभाव समाज में देखा जाने लगा था। वही प्रणाली मुनि जीवन में भी आई होगी, क्योंकि कई यति प्रतिबोधित होकर मुनि बनते थे और इन्हीं कारणों के चलते यह विधि प्रचलन में आई होगी। • स्वर्ण को एक शुद्ध धातु मानते हैं। वह किसी भी प्रकार की बाह्य अशुद्धियों से प्रभावित नहीं होता। स्वर्ण को जितना तपाया जाए वह उतना ही शुद्ध होता जाता है, उसी प्रकार पदग्राही भी बाह्य परिस्थितियों से प्रभावित न होकर स्वर्ण की भाँति स्वयं को कर्म पुद्गलों से दूर रखते हुए शुद्ध आत्मस्वरूप को प्राप्त करे। इस उद्देश्य से स्वर्ण धारण की उपयोगिता कही जा सकती है।

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