Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 320
________________ 262...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में है, पंचपरमेष्ठि में तीसरे पद के धारक हो गये हैं अतः मेरे लिए सम्माननीय और आप सभी के लिए भी विशेष पूजनीय है। नूतन आचार्य को यह सूचित करते हैं कि अब तुम मेरे समकक्ष हो, तुम्हारा पद एवं दायित्व बढ़ गया है। अत: तुम्हें और अधिक जागरूक एवं अप्रमत्त बनना है तथा तुम्हें इस पद के अनुरूप विनय गुण में वर्धन करना है । - इन्हीं भावों की अभिव्यक्ति के रूप में गुरु ज्येष्ठ होकर भी नूतन पदधारी को वन्दन करते हैं। सूरिमन्त्र एवं घनसार युक्त चन्दन से अक्षतों का अभिमन्त्रण क्यों ? सूरिमन्त्र की अपनी विशिष्ट शक्ति है। उस मन्त्रशक्ति से अभिमन्त्रित अक्षतों में भी विशेष प्रभाव उत्पन्न होता है। उसमें चन्दन घनसार मिलाने पर उसकी सुगन्ध से वातावरण में अद्भुत शक्ति का निर्माण होता है। दूसरे, यह एक विशिष्ट पद का अनुष्ठान है। इस पद के साथ सम्पूर्ण संघ की गरिमा जुड़ी हुई है। जिन अक्षतों से नूतन पदधारी को बधाया जाए, उनमें लोगों के शुद्ध भावों का मिश्रण हो जाने से वे आचार्य पद के निर्विघ्न पालन में सहयोग प्रदान करते हैं। जिस प्रकार अक्षत अखण्ड और पुनः उत्पन्न नहीं होते, वैसे ही नूतन पदधारी सम्यक्ज्ञान, सम्यक्चारित्र आदि में अखण्ड रहें, गृहीत पद या व्रत को सम्यक् प्रकार से धारण करें और संसार सागर से शीघ्र पार होवें इन भावों से अक्षतों को अभिमन्त्रित कर फिर बधाते हैं। अक्षत यह अन्न रूप है तब सामान्य जन के द्वारा नूतन पदधारी साधुसाध्वियों को अक्षतों से बधाने का अभिप्राय क्या है? • यह बात सत्य है कि चावल अन्न है और भारतीय परम्परा में अन्न को देवता माना गया है। तब बधाते समय चावलों का प्रयोग ही क्यों किया जाता है ? इसके कई कारण हो सकते हैं। • अक्षत अभिमन्त्रण का वर्णन हमें पांचवीं - छठीं शती के बाद के ग्रन्थों में प्राप्त होता है। उस समय श्रमण परम्परा में वैदिक परम्परा के क्रियाकाण्डों का प्रभाव लोक - व्यवहार वश आने लगा था, अतः यह क्रिया उस काल परिस्थिति में विशेष कारणों से स्वीकार की गयी हो और तदनन्तर परम्परा बन गयी हो। -

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