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264...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में दूसरे जिस प्रकार हाथ कंकण एवं मुद्रा से शोभायमान होता है वैसे ही उनसे गच्छ एवं संघ की शोभा बढ़े।
निर्वाणकलिका के अनुसार नूतन आचार्य को छत्र, चामर, हाथी, खड्ग, अश्व, पादुका, शिबिका, राजचिह्न, खटिका आदि सामग्री प्रदान की जाती थी। मुनि जीवन में इन साधनों की क्या उपादेयता हो सकती है?
यह परम्परा विक्रम की ८वीं शती के आस-पास पादलिप्ताचार्य के युग में प्रचलित थी। इसका कारण यह हो सकता है कि उस समय राजा-महाराजाओं का अत्यधिक वर्चस्व होने से उनका अमिट प्रभाव धर्माचार्यों पर भी होता था । आचार्य जो कि तीर्थङ्कर के समान माने जाते हैं एवं चतुर्विध संघ या गच्छ के नायक या राजा रूप होते हैं। इसी तुल्यबल को दर्शाने एवं बहुमान हेतु उनके अनुयायी राजाओं के द्वारा यह अर्पित किये जाते होंगे, जिससे जनसामान्य उनका आदर-सम्मान करें और धर्म की प्रभावना हो ।
नूतन आचार्य को पीठफलक, चौकी एवं तीन कंबल परिमाण आसन क्यों प्रदान किए जाते हैं?
• आचार्य पद की अपनी महत्ता एवं गरिमा है। वैसे आचार्य को स्वयं का बहुमान पाने या स्वयं की महिमा दिखाने की कोई भावना नहीं होती, परन्तु धर्म प्रभावना एवं आचार्य पद के सम्मानार्थ यह उपकरण उन्हें दिये जाते हैं।
• दूसरी बात, आचार्य पदस्थ मुनि के दायित्व एवं कार्यभार बढ़ जाते हैं उस स्थिति में अधिक बैठने के कारण कोई शारीरिक व्याधि उत्पन्न न हो तथा दर्शनार्थी उन्हें देखकर पहचान पाये कि यह आचार्य है । इस दृष्टि से आचार्य पद के प्रतीक स्वरूप यह चिह्न प्रदान किये जाते होंगे।
• आचार्य को तीन, उपाध्याय को दो एवं वाचनाचार्य को एक कम्बल प्रमाण आसन दिया जाता है, जो उनके पद की तरतमता को दर्शाता है । हर स्थान पर चौकी आदि मिलना सम्भव नहीं है, तब कम्बल परिमाण आसन उनकी श्रेष्ठता को दर्शाते हुए निर्मल भावों को विकसित करने का सूचन
करता है।