Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 314
________________ 256...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में सामान्यतया वाचनाचार्य द्वारा साध्वियों को भी वाचना दी जाती है, किन्तु देश-काल की अपेक्षा उनकी भी कुछ मर्यादाएँ होती है तथा जरूरत के अनुसार वाचनाचार्य का सान्निध्य प्राप्त हो ही, यह सम्भव नहीं है। इस व्यवहार को ध्यान में रखते हुए प्रवर्त्तिनी पद की व्यवस्था का सूत्रपात हुआ मालूम होता है। इससे साध्वियाँ भी अधिकाधिक समय तक वाचना ग्रहण कर सकती हैं। कुछ जन प्रवर्त्तिनी और महत्तरा दोनों पदों को समान मानते हैं और कुछैक दोनों पदों को पृथक्-पृथक् स्वीकारते हैं। खरतरगच्छ आम्नाय में दोनों पदों को भिन्न-भिन्न माना गया है जो पर्याय, अधिकार आदि की अपेक्षा उचित प्रतीत होता है। सन्दर्भ - सूची 1. निर्ग्रन्थीवर्गेऽपि पंच पदानि, तद्यथा- प्रवर्त्तिनी, अभिषेका, भिक्षुणी, स्थविरा, क्षुल्लिका चा बृहत्कल्पभाष्य, 6111 की चूर्णि 2. पंच संजतीओ इमा- खुड्डी, थेरी, भिक्खुणी, अभिसेगी, पवत्तिणी। निशीथसूत्र, 4/5332 की चूर्णि 3. संस्कृत - हिन्दी कोश, पृ. 673 4. पाइयसद्दमहण्णवो, पृ. 574 5. प्रवर्त्तयति साधूनाचार्योपदिष्टेषु वैयावृत्यादिषु प्रवर्त्ती । स्थानांगसूत्रवृत्ति, 4/3/पृ. 232 6. गणमहत्तरिकायाम् आचार्यस्थानीयायां सकलसाध्वीनां नायिकायाम्। 8. बृहत्कल्पभाष्य, गा. 1043-1044 9. वही, गा. 1071, 2222-2231 बृहत्कल्पभाष्य, गा. 4339 की टीका 7. तव नियम विणयगुणनिहि, पवत्तया नाणदंसण चरित्ते । संगहुवग्गहकुसला, पवत्ति एयारिसा हुंति || व्यवहारभाष्य, गा. 958 10. व्यवहारभाष्य, गा. 1589-1590 की टीका 11. व्यवहारभाष्य, 2310, 2314 वृत्ति 12. पंचवस्तुक, गा. 1317 13. विधिमार्गप्रपा - सानुवाद, पृ. 213 14. गीतार्था कुलजाऽभ्यस्त, सत्क्रिया पारिणामिकी। गम्भीरोभय तो वृद्धा, स्मृताऽऽर्याऽपि प्रवर्तिनी ॥ धर्मसंग्रह अधिकार 3/गा. 137, पृ. 519

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