Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

Previous | Next

Page 317
________________ पदारोहण सम्बन्धी विधियों के रहस्य...259 है अत: विशेष कार्यभार या प्रमुख पद संभालने से पूर्व तो यह आवश्यक हो ही जाता है। • यह एक विशिष्ट अभिमन्त्रित चूर्ण है जिसमें आचार्य आदि की साधना के विशिष्ट परमाणुओं की शक्ति भी होती है। • इसके माध्यम से नूतन पदधारी को गुरुजनों की मंगल कामनाएँ एवं उनका अन्त: आशीष प्राप्त होता है तथा यह एक गीतार्थ सम्मत परम्परा भी है। • श्रद्धा के बल पर कई कार्य सिद्ध होते हैं, यह भी एक प्रकार से गुरु के प्रति श्रद्धा, समर्पण एवं विनय की अभिव्यक्ति है। • हम अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी में देखते हैं कि मोबाइल आदि से कुछ ही क्षणों (Seconds) में व्यक्ति दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने में बात कर सकता है। जब अजीव पदार्थों में और उनसे निःसृत होने वाली किरणों में इतनी शक्ति है तो फिर सजीव चेतन सत्ता के परमाणुओं में तो उससे अनन्त गुणा शक्ति होती है जो कि वर्तमान में Telepathy आदि के द्वारा सिद्ध हो चुकी है। इसी प्रकार वासचूर्ण भी अपना प्रभाव डालता है तथा उसे मंत्रित करने के लिए उपयुक्त मन्त्रों का प्रभाव भी इसमें होता है। पदस्थापना के समय प्रवर्तिनी एवं महत्तरा को स्कन्धकरणी एवं कम्बलयुक्त आसन क्यों दिया जाता है ? प्रवर्तिनी एवं महत्तरा पदस्थापना के दौरान उन्हें स्कन्धकरणी देने के पीछे निम्न तथ्य अन्तर्भूत होने चाहिए। • सामान्य व्यवहार में हम देखते हैं कि किसी का भी बहुमान या सम्मान करने के प्रतीक स्वरूप शाल आदि दी जाती है वैसे ही प्रवर्तिनी या महत्तरा को भी महत्त्वपूर्ण पद पर स्थापित करने के बहुमान स्वरूप स्कन्धकरणी प्रदान की जाती है। • स्कन्धकरणी कन्धे पर धारण की जाती है। कन्धे कार्यभार को सम्भालने के प्रतीक हैं। स्कन्धकरणी प्रदान करते हए नूतन पदारूढ़ महत्तरा या प्रवर्तिनी साध्वी को यह मूक सन्देश दिया जाता है कि अब से आप पर श्रमणी समुदाय का विशेष भार है। जैसे कंबली संयम जीवन में उपयोगी है और शीतकाल आदि कई स्थितियों में शरीर की रक्षा करती है वैसे ही तुम भी श्रमणियों के संयम उपकारी बनते हुए उनका सुखपूर्वक निर्वाह करना।

Loading...

Page Navigation
1 ... 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332