Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 316
________________ अध्याय- 11 पदारोहण सम्बन्धी विधियों के रहस्य पदस्थापित करने से पूर्व केशलोच की आवश्यकता क्यों ? जिस प्रकार दीक्षा से पूर्व केशलोच किया जाता है, वैसे ही श्रमण या श्रमणी का आचार्य आदि पद पर स्थापित करने से पूर्व केशलोच करते हैं उसके निम्न कारण हो सकते हैं - • लोच के द्वारा पदग्राही को यह आभास करवाया जाता है कि अब तुम पर विशेष कार्यभार सौंपा जा रहा है। यदि तुम्हारे भाव किसी प्रकार के कषाय आदि से जुड़े हुए हों तो उन्हें दृढ़ प्रयत्न से समाप्त कर देना है। इसी के साथ यह भी संकेत दिया जाता है कि तुम्हारे भीतर शासन दायित्व की योग्यता विकसित हो चुकी है और चित्त की मलीन वृत्तियाँ निर्मलता का आश्रय पा चुकी है उन संस्कारों को स्थायित्व प्रदान करने के प्रतीक रूप में लोच किया गया है। यहाँ लोच के द्वारा द्रव्य रूप में बाह्य केशों का उत्पाटन तथा निश्चय से पद निर्वाह में बाधक क्रोध आदि कषायों के उत्पाटन के भाव किये जाते हैं। पदस्थापना के अवसर पर लोच करने का दूसरा हेतु यह कहा जा सकता है कि पर्यूषण का समय या कोई नूतन दीक्षा आदि न होने पर भी लोच किये हुए मुनि को देखकर संघ में यह स्पष्ट रूप से ज्ञात हो जाता है कि यह पदग्राही मुनि है। इससे यह भी सूचित होता है कि यह पद विधि पूर्वक दिया गया है तथा इसे सहज रूप में प्राप्त नहीं किया जाता। • लोच के द्वारा मस्तिष्कीय पिच्युटरी एवं पिनीयल ग्रन्थी (Glands) तथा हायपोथैलेमस (Hypothalamus) का स्राव सन्तुलित होता है, जिससे अप्रमत्तता बढ़ती है। पदग्राही मुनि पर वासनिक्षेप क्यों किया जाए? वर्तमान की जैन परम्परा में वास निक्षेप बहुत प्रचलित है। प्रत्येक मांगलिक कार्य से पूर्व वासचूर्ण ग्रहण करने की क्रिया गृहस्थ एवं मुनिवर्ग दोनों में मिलती

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