Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 290
________________ 232...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में 2. तत्पश्चात दूसरी बार एक खमासमण देकर कहे "संदिसह किं भणामो" आज्ञा दीजिए, मैं क्या कहूँ? तब गुरु कहें - ' वंदित्ता पवेयह ' वन्दन करके प्रवेदित करो। 3. फिर तीसरी बार एक खमासमण देकर कहे 'तुम्भेहिं अम्हं महत्तरापयमणुण्णायं?' आपके द्वारा क्या मुझे महत्तरापद की अनुज्ञा दी गयी है ? तब गुरु तीन बार 'अणुण्णायं' कहें। साथ ही 'खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं, अन्नेसिं पि पवेयणीयं' कहते हुए महत्तरा को पद अभिवृद्धि हेतु आशीर्वाद प्रदान करें। फिर महत्तरा कहे - 'इच्छामो अणुसट्ठि' - मैं पद सम्बन्धी अनुशिष्टि (हितशिक्षा) की इच्छा करती हूँ। तब गुरु कहते हैं - 'नित्थारपारगा होहि, गुरुगुणेहिं वुड्ढाहि' - संसारसागर से पार होओ और महान गुणों के द्वारा वृद्धि को प्राप्त होओ। - 4. उसके बाद चौथी बार पुनः एक खमासमण देकर कहे 'तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि' मैं आपको महत्तरापद के बारे में यथायोग्य कह चुकी हूँ, अब आपकी अनुमति से चतुर्विधसंघ के समक्ष इसका प्रवेदन करना चाहती हूँ । 1 — 5. तत्पश्चात नूतन महत्तरा पांचवीं बार खमासमणसूत्र पूर्वक वन्दन करें | फिर नमस्कारमन्त्र का उच्चारण करते हुए गुरु एवं समवसरण की तीन प्रदक्षिणा दें। प्रत्येक प्रदक्षिणा में एक - एक नमस्कारमन्त्र बोलें। उस समय नूतन महत्तरा के मस्तक पर चतुर्विध संघ वासचूर्ण का क्षेपण करें। 6. फिर नूतन महत्तरा छट्ठा खमासमण देकर कहे - 'तुम्हाणं पवेइयं, साहूणं पवेइयं संदिसह करेमि । 7. फिर सातवीं बार खमासमण पूर्वक वन्दन करके कहे - 'अणुण्णायं महत्तरापयथिरीकरणत्थं करेमि काउस्सग्गं' - आपके द्वारा जिसकी अनुज्ञा दी गयी है, उस महत्तरापद के स्थिरीकरण के लिए मैं कायोत्सर्ग करती हूँ, इतना कहकर एक लोगस्ससूत्र का चिन्तन करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में चतुर्विंशतिस्तव बोलें। मन्त्रदान – फिर एक खमासमण देकर अपने आसन पर बैठ जाएं। तदनन्तर इष्ट लग्न के आने पर गुरु भगवन्त नूतन महत्तरा के कन्धे पर कम्बली रखें। फिर

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