Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

Previous | Next

Page 293
________________ महत्तरापद स्थापना विधि का तात्त्विक स्वरूप...235 जिस साध्वी को प्रवर्तिनीपद या महत्तरापद की अनुज्ञा दी जाती है वह पद की अनुज्ञा के बाद स्वयं के लिए एवं अन्य साध्वियों के लिए वस्त्र-पात्र आदि ग्रहण कर सकती हैं, इससे पूर्व तक उन्हें गुरु द्वारा दिए गए वस्त्र आदि ही ग्राह्य होते हैं। तुलनात्मक विवेचन जब हम महत्तरापदस्थापना विधि का तुलनात्मक अध्ययन करते हैं तो इससे सम्बन्धित ग्रन्थों में कहीं समरूपता तो कहीं विभिन्नता नजर आती है जो निम्नानुसार है___ स्कन्धकरणी की अपेक्षा- कंबली साध्वी का एक उपकरण है। पूर्व परम्परा से महत्तरा पदस्थ को लग्नवेला में कंबली दी जाती है अत: सामाचारीसंग्रह, सुबोधासामाचारी, विधिमार्गप्रपा आदि ग्रन्थों में स्कन्धकरणी देने का निर्देश है, किन्तु सामाचारीप्रकरण में यह उल्लेख नहीं है। वासाभिमन्त्रण की अपेक्षा- पदस्थापना के दिन गुरु नूतन महत्तरा साध्वी के सिर पर वासदान करते हैं तथा चतुर्विध संघ उसे बधाते हैं। वह वासचूर्ण उसी दिन अभिमन्त्रित किया जाता है। सामाचारीसंग्रह आदि में गन्धचूर्ण को अभिमन्त्रित करने का तो स्पष्ट निर्देश है, परन्तु कौन से मन्त्र एवं मुद्राओं के द्वारा उसे मन्त्रित करना चाहिए, इसका उल्लेख नहीं है। यद्यपि आचारदिनकर में परमेष्ठी, सौभाग्य, गरुड, मुद्गर एवं कामधेनु- इन पाँच मुद्राओं से अधिवासित करने का सूचन है।16 प्रत्याख्यान की अपेक्षा- गीतार्थ आचरणा के अनुसार नूतन महत्तरा को पदस्थापना के दिन कोई तप अवश्य करना चाहिए। सामान्यतया सामाचारीसंग्रह, सामाचारीप्रकरण, सुबोधासामाचारी, विधिमार्गप्रपा वगैरह में आयंबिल तप करने का उल्लेख है। कुछ में परम्परागत सामाचारी के अनुरूप भी तप करने का निर्देश है। पददाता की अपेक्षा- महत्तरापद किसके द्वारा दिया जाना चाहिए ? इस सम्बन्ध में सामाचारीसंग्रह आदि के अनुसार यह पद आचार्य द्वारा दिया जाना चाहिए। वर्तमान में भी यही अवधारणा मान्य है। महोत्सव की अपेक्षा- आचारदिनकर में कहा गया है कि इस पद के अवसर पर अमारि घोषणा, वेदी बनाना, जवारारोपण करना, आरती आदि

Loading...

Page Navigation
1 ... 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332