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234...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में
जिस प्रकार समुद्र मोती आदि मूल्यवान और शंख-सीपादि अमूल्यवान दोनों तरह के पदार्थों को समान रूप से धारण करता है उसी प्रकार तुम भी सामान्य या विशिष्ट शिष्याओं में तुल्य भाव रखना, सभी को समान दृष्टि से देखना।
कई आत्माएँ इस पद पर आरूढ़ होकर भी जलतरंग की भांति इसका त्याग कर देती हैं, परन्तु तुम सदैव 'यह पद धन्य है' ऐसा मानते हुए श्रेष्ठ भावों से इस पद का अनुपालन करना।
हे धन्या! तुम गुरुणी, अंगप्रतिचारिका, धायमाता, प्रिय सखी, भगिनी, माता, मातामही (दादी) एवं पितामही (दादा) की तरह वात्सल्ययुक्त होकर इन आर्याओं को अनुशिक्षित करना। जिस प्रकार तुम्हारे गुरु, पिता व बन्धुगण वात्सल्य से ओत-प्रोत होकर तुम पर अनुशासन करते हैं तुम भी महत्तरापद पर अनुशासित होती हुई आर्याओं को अनुशासन में रखना।
तुम्हारे द्वारा इस पद पर रहते हुए गुरुजनों और मुनिजनों के प्रति कभी भी प्रतिकूल आचरण नहीं किया जाना चाहिए। कदाचित उनके द्वारा प्रतिकूल व्यवहार हो भी जाए, तब भी तुम अनुकूल प्रवृत्ति ही करना।
तुम सदैव इस पद को शोभायमान करती हुई मधुर बोलना। थोड़ा भी क्रोध मत करना। कभी गुरु या वरिष्ठ साध्वी कुपित होकर तुम्हारे पूर्वगत दोषों को कह भी दें, तब भी क्रोध मत करना, बल्कि मृगावती की तरह क्षमायाचना करना। __तुम शान्त भाव से चलना, शान्त भाव से बोलना, शान्त भाव से बैठना। तुम्हारे द्वारा सभी कार्य समता पूर्वक किये जाएं, इस बात का ध्यान रखना।
तुम्हारी निश्रावर्ती एवं दूरस्थ सभी साध्वियों को योग्य बनाकर उन्हें इस पद पर आरूढ़ करना। वृद्ध आर्याओं में भी इस पद के गुणों का आरोपण करती हई सिद्धस्थान को प्राप्त करना।
शेष विधि - हितशिक्षा ग्रहण करने के पश्चात नूतन महत्तरा गुरु को द्वादशावर्त वन्दन करें और सामाचारी के अनुसार आयंबिल आदि का प्रत्याख्यान करें। उपस्थित श्रावक आदि नूतन महत्तरा को थोभ वन्दन करें। साध्वियाँ एवं श्राविकाएँ द्वादशावर्त वन्दन करें। उस दिन जिनालय में अथवा जहाँ नन्दी रचना की गयी हो वहाँ पर प्रभु भक्ति, स्नात्र पूजा आदि महोत्सव करना चाहिए।