Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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44... पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में
विधिमार्गप्रपा में इस सम्बन्ध में जो मन्त्र दिया गया है, वह प्राचीन सामाचारी में वर्णित मन्त्र के अन्तिम भाग से प्रायः समरूपता रखता है97
"ॐ नमो भगवओ अरहओ महइ महावीर वद्धमाणसामिस्स सिज्झउ मे भगवई महई महाविज्जा ॐ वीरे वीरे महावीरे जयवीरे सेणवीरे वद्धमाणवीरे जए विजए जयंते अपराजिए अणिहए ओं ह्रीं स्वाहा । " इस प्रकार वर्धमानविद्यामन्त्र को लेकर सामाचारी ग्रन्थों में सामान्यतया मत वैभिन्य है।
वर्धमानविद्यापट्ट सम्बन्धी प्राचीनसामाचारी, विधिमार्गप्रपा एवं आचारदिनकर में नूतन वाचनाचार्य को वर्धमानविद्यामण्डलपट्ट देने का निर्देश मात्र है, किन्तु तिलकाचार्यसामाचारी में इस पट्टालेखन की विधि भी दी गयी है और बताया गया है कि यह पट्ट यन्त्र आठ वलय का होता है तथा प्रत्येक वलय में भिन्न-भिन्न मन्त्र एवं गाथाएँ लिखी जाती है | 98 इसमें निर्दिष्ट मन्त्रों का अमुकअमुक संख्या में जाप कर उन्हें सिद्ध किया जाता है ।
क्रम सम्बन्धी - तिलकाचार्यसामाचारी, विधिमार्गप्रपा एवं आचारदिनकर में प्रतिपादित इस विधि के क्रम में परस्पर अन्तर है जैसे- तिलकाचार्यसामाचारी में देववन्दन एवं नन्दी क्रिया के अनन्तर ही 'निषद्या' देने का उल्लेख है जबकि विधिमार्गप्रपा में वासदान, प्रदक्षिणा, कायोत्सर्ग, अनुज्ञापन आदि के पश्चात निषद्या देने का सूचन है । आचारदिनकर में निषद्यादान का उल्लेख ही नहीं है । इसी प्रकार क्रम सम्बन्धी और भी कुछ भिन्नताएँ देखी जाती हैं।
आलापक सम्बन्धी - पूर्व निर्दिष्ट ग्रन्थों में आलापक पाठ सम्बन्धी अन्तर भी दिखाई देता है, जैसे अनुयोग प्रारम्भ करने निमित्त तिलकाचार्यसामाचारी में यह पाठ है - 'इच्छाकारेण तुम्भे अम्हं वाचनाचार्यपटु अणुजाणहं' 99 विधिमार्गप्रपा में ‘इच्छाकारेण तुम्भे अम्हं वायणारियपय अणुजाणावणियं वासनिक्खेवं करेह' यह पाठ है। 100 आचारदिनकर में 'इच्छाकारेण तुब्भे अम्हं वायणा अनुज्ञापयारोवणियं नंदिकड्डावणियं वासक्खेवं करेह चेइयाई च वंदावेह' ऐसा आलापक पाठ है। 101
इस प्रकार चर्चित ग्रन्थों में वाचनाचार्य पद स्थापना के भिन्न-भिन्न आलापक पद मिलते हैं यद्यपि इनमें शब्द संरचना एवं भाषागत अंतर होते हुए भी अर्थ साम्य देखा जाता है। आचारदिनकर में वाचना, तप एवं दिशा सम्बन्धी अनुज्ञा देने के भी पाठ हैं। 102
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