Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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वाचना दान एवं ग्रहण विधि का मौलिक स्वरूप...45 कृत्य सम्बन्धी - नूतन वाचनाचार्य के अधिकारों की चर्चा करते हुए प्राचीनसामाचारी में कहा गया है कि वह आचार्य के समान सभी कृत्यों को सम्पन्न कर सकता है, किन्तु उसके लिए अपने से ज्येष्ठ मुनियों को वन्दन एवं समयानुसार भिक्षाटन करने का विशेष निर्देश है।103 आचारदिनकर के मन्तव्यानुसार नूतन वाचनाचार्य व्रतारोपण, नन्दी क्रिया, योगोद्वहन, वाचना, तपोविधान, विहार आदि की अनुज्ञा, श्रावक व्रतारोपण, अन्तिम आराधना, प्रतिष्ठा विधि इत्यादि अनुष्ठान सम्पन्न करवा सकता है।104
विधिमार्गप्रपा में इस विषयक कोई आलेख नहीं है। इसके अतिरिक्त वासनिक्षेप, देववन्दन, लघुनन्दीश्रवण, आसन दान, मन्त्र दान, प्रदक्षिणा आदि विधियों में लगभग समरूपता है। ____ यदि जैन, वैदिक एवं बौद्ध परम्पराओं के परिप्रेक्ष्य में इस विधि का समाकलन करें तो श्वेताम्बर ग्रन्थों में इसके स्पष्ट उल्लेख तो मिलते हैं किन्तु आजकल यह पदस्थापना विधि नहींवत ही देखी जाती है। वर्तमान में वाचना दान आचार्य, उपाध्याय अथवा आगम ज्ञाता सुयोग्य मुनि भी करते है।
दिगम्बर परम्परा के आदिपुराण में गर्भान्वय आदि तिरेपन क्रियाओं का वर्णन है, उसमें गणोपग्रहण नाम की अट्ठाईसवी क्रिया की तुलना वाचनानुज्ञा से कर सकते हैं। आचार्य जिनसेन ने गणोपग्रहण विधि का वर्णन करते हुए कहा है कि वह मुनि आचार्य आर्यिका, श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध संघ को समीचीन मार्ग में लगाता हुआ उनका पोषण करें। शास्त्र अध्ययन की इच्छा करने वालों को दीक्षा दें और धर्मात्मा जीवों के लिए धर्म का प्रतिपादन करें। सदाचार धारण करने वालों को प्रेरित करें, दूराचारियों को दूर हटाएं और अपराध रूपी मल का शोधन करते हुए अपने आश्रित गण की रक्षा करें।105
इस प्रकार दिगम्बर आम्नाय में भी आंशिक भिन्नता के साथ प्रस्तुत विधि का स्वरूप प्राप्त हो जाता है यद्यपि श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय की भांति इसमें एक निश्चित विधि का अभाव है।
बौद्ध परम्परा में त्रिपिटक के जानकार वरिष्ठ भिक्षु को आचार्य और उपाध्याय के समकक्ष माना जाता है, उसमें वाचनाचार्य पद का उल्लेख नहीं है। यद्यपि वही वरिष्ठ भिक्षुक अध्यापन का कार्य भी करता है। बुद्ध ने अपने