Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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उपाध्याय पदस्थापना विधि का वैज्ञानिक स्वरूप...129 वैयावत्य करने योग्य दस प्रकारों में आचार्य, उपाध्याय, स्थविर आदि का नाम लिया गया है।62 इस प्रकार विभिन्न दृष्टियों से उपाध्याय का नामोल्लेख है। समवायांगसूत्र में मोहनीय कर्मबंधन के कारणभूत तीस स्थान आख्यात हैं उनमें आचार्य - उपाध्याय की आशातना करने को चौबीसवां स्थान माना गया है।63
- भगवतीसूत्र में आचार्य- उपाध्याय के सम्बन्ध में कहा गया है कि जो आचार्य और उपाध्याय अपने कर्तव्य और दायित्व का भलीभांति वहन करते हैं वे उसी भव में मुक्त हो जाते हैं अथवा एक, दो या अधिक से अधिक तीन भव में मुक्त हो जाते हैं, किन्तु वे तीन से अधिक भव नहीं करते।64
ज्ञाताधर्मकथा में उपाध्याय की सन्निधि का महत्त्व बताते हुए कहा गया है कि जो साधु-साध्वी आचार्य-उपाध्याय के निकट दीक्षित होकर इन्द्रियों को संयमित-नियन्त्रित नहीं करते, वे इसी भव में चतुर्विध संघ द्वारा हीलना योग्य होते हैं और परलोक में भी दण्डित (दुःखी) होते हैं।65
इसी तरह आचार्य-उपाध्याय के सन्निकट दीक्षित होकर महाव्रतों का सम्यक पालन न करने वाला लोक-निन्दनीय एवं अनादरणीय होता है।66
इस प्रकार मूलागमों में उपाध्याय की विशिष्टता एवं प्रभावशीलता का स्वर ही अधिक मुखरित हुआ है। उपाध्याय पदस्थापना-विधि का कहीं उल्लेख नहीं है। ___ इससे परवर्ती उपांग-छेद-मूल आदि सूत्रों का अध्ययन किया जाए तो निश्चित रूप से कुछ विशिष्ट बिन्दु ज्ञात होते हैं जैसे- उत्तराध्ययनसूत्र में उपाध्याय की उपमाएँ, व्यवहारसूत्र में उपाध्याय के अतिशय एवं विशिष्ट सामाचारी प्रतिबद्ध नियम, योग्यता आदि का वर्णन है।
यदि हम आगमिक व्याख्या साहित्य का पर्यवेक्षण करें तो इसके सम्बन्ध में अपेक्षाकृत विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है जैसे- आचारांगटीका,67 आवश्यकनियुक्ति,68 विशेषावश्यकभाष्य, व्यवहारभाष्य,70 दशवैकालिकचूर्णि' आदि में उपाध्याय शब्द की परिभाषाएँ, उसके अधिकार एवं सामाचारी सम्बन्धी वर्णन किया गया है। - यदि हम पूर्वकालीन अथवा मध्यकालीन ग्रन्थों का अवलोकन करें तो विक्रम की 12वीं शती से 16वीं शती पर्यन्त के उपलब्ध साहित्य में