Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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आचार्य पदस्थापना विधि का शास्त्रीय स्वरूप... 1
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एकाकी विहार करने की योग्यता का एवं विचरणकाल में सावधानियाँ रखने का ज्ञान करवाना। भिक्षु का यह द्वितीय मनोरथ है कि “कब मैं गच्छ के सामूहिक कर्त्तव्यों से मुक्त होकर एकाकी विहार चर्या धारण करूंगा।” अतः एकाकी विहारचर्या की विधि का बोध कराना आचार्य का चौथा आचार विनय है।
2. श्रुत विनय - आचार्य का दूसरा कर्त्तव्य यह है कि वह आचारधर्म का प्रशिक्षण देने के साथ-साथ संघस्थ मुनियों (शिष्यों) को सूत्र एवं अर्थ की समुचित वाचना देकर उन्हें श्रुत सम्पन्न बनायें।
श्रुत विनय रूप शिक्षा चार तरह से दी जाती है 5 (i) सूत्र वाचना आचार सम्पन्न शिष्यों को सूत्र की वाचना देकर स्वयं को एवं शिष्यों को मोक्षमार्ग की ओर ले जाना।
(ii) अर्थ वाचना आचारयुक्त शिष्यों को अर्थ की वाचना देकर जिन प्रवचन की महिमा का अभिवर्द्धन करना।
(iii) हित वाचना शिष्य की योग्यतानुसार सूत्र - अर्थ की वाचना देना हितकारी वाचना है जैसे- शास्त्रज्ञान को जीवन में क्रियान्वित करवाना अथवा समय-समय पर उन्हें हितशिक्षा देना। परिणामी शिष्य को वाचना देने से इहलोक-परलोक में हित होता है ।
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(iv) निःशेष वाचना सूत्र रुचिवान शिष्यों को नय-निक्षेप-प्रमाण आदि के द्वारा सूत्रार्थ का समग्रता से बोध कराना अथवा छेदसूत्र आदि आगमों की क्रमश: वाचना के समय आने वाले विघ्नों का शमन कर श्रुतवाचना पूर्ण
करना।
3. विक्षेपण विनय विविध प्रकार के उपायों से शिष्यों को सम्यक्त्व धर्म में प्रतिष्ठित करना विक्षेपणविनय है। विक्षेपण विनय के चार प्रकार हैं--- (i) अदृष्ट-दृष्टपूर्वकगत जो शिष्य धर्म के स्वरूप से अनभिज्ञ हैं उन्हें धर्म का स्वरूप समझाना। जिसने धर्म के सम्यक स्वरूप को पूर्ण रूप से नहीं समझा है उन्हें सम्यक्त्व का स्वरूप समझाकर दृढ़ श्रद्धा वाला बनाना।
(ii) दृष्टपूर्वक साधर्मिकगत - जो अनगार (संयम) धर्म के प्रति उत्सुक नहीं हैं, उन्हें अनगार धर्म स्वीकार करने के लिए उत्प्रेरित करना अथवा श्रावकों को समानधर्मी अर्थात संयमी बनाना ।
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