Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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168...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में से बाहर चले जाएं तो उन्हें पुनः संयम में स्थिर करने या गण में वापस लाने के लिए भी गण से निर्गमन करते हैं।
सारांश यह है कि यदि आचार्य या उपाध्याय की किसी भी प्रवृत्ति के द्वारा संघ या गण की प्रतिष्ठा, मर्यादा और कीर्ति खण्डित होती हो, तो उस स्थिति में उन्हें गण निर्गमन कर लेना चाहिए। आचार्य के व्यावहारिक उत्तरदायित्व
जब किसी श्रमण को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित करते हैं तब वह सम्पूर्ण संघ का अनुशास्ता या धर्म संघ का शास्ता बन जाता है। उस समय उनके लिए संघ संरक्षण एवं संवर्द्धन के अनेक कर्तव्यों का निर्वाह करना अत्यावश्यक होता है। दशाश्रुतस्कन्ध में आचार्य के प्रमुख रूप से चार कर्तव्य माने गये हैं। ये कर्तव्य विनय प्रशिक्षण रूप हैं। आचार्य अपने शिष्यों को चार प्रकार का विनय सिखाकर संघ ऋण से मुक्त हो सकते हैं। अत: इन्हें चार प्रकार का विनय प्रतिपत्ति और ऋण मुक्ति के मार्ग का सारथी भी कहा गया है। दशाश्रुतस्कन्ध में विनय प्रतिपत्ति का सामान्य वर्णन ही प्राप्त होता है, किन्तु दशाश्रुतस्कन्धचूर्णि में इस विषय का विस्तृत विवेचन उपलब्ध है।
विनय प्रतिपत्ति सम्बन्धी चार प्रकारों के नाम निम्न हैं
1. आचार विनय 2. श्रुत विनय 3. विक्षेपण विनय 4. दोष निर्घातना विनय।
1. आचार विनय - आचार्य अपने शिष्यों को सबसे पहले आचार विषयक शिक्षा दें। वह आचार-सम्बन्धी शिक्षा चार प्रकार की होती है।64 ___ (i) संयम सामाचारी - संयम की सामाचारी सिखाना अर्थात स्वयं संयम का समाचरण करना, शिष्यों से संयम का आचरण करवाना, संयम से पतित होने वालों को स्थिर करना तथा उद्यमशील साधु को उत्प्रेरित कर आगे बढ़ाना।
(ii) तप सामाचारी - तप की सामाचारी सिखाना अर्थात बारह प्रकार के तप में स्वयं को तथा दूसरों को नियोजित करना।
(iii) गण सामाचारी - प्रतिलेखना आदि क्रियाओं में प्रमाद नहीं करने देना, नव दीक्षित आदि की वैयावृत्य-सम्बन्धी व्यवस्था करना, सेवा करने वालों को उत्साहित करना।
(iv) एकल विहार सामाचारी - गण की सामूहिक चर्या का त्यागकर