Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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आचार्य पदस्थापना विधि का शास्त्रीय स्वरूप...191 जिन सूत्रों में अरिहन्त परमात्मा के सम्यक्त्व प्राप्ति से लेकर तीर्थ प्रवर्तन और मोक्षगमन तक का निरूपण हो वह प्रथमानुयोग कहा जाता है।
जिन सूत्रों में समान वक्तव्यता से अर्थाधिकार का अनुसरण करने वाली वाक्य पद्धति निहित हो वह गण्डिकानुयोग है।116 गण्डिकानुयोग के अनेक प्रकार हैं जैसे
कुलकर गण्डिकानुयोग - विमलवाहन आदि कुलकरों का जीवन चरित्र बताने वाले सूत्र।
तीर्थङ्कर गण्डिकानुयोग - तीर्थङ्कर पुरुषों के जीवन चरित्र का प्रतिपादन करने वाले सूत्र।
हरिवंश गण्डिकानुयोग - हरिवंश में उत्पन्न महापुरुषों का जीवन चरित्र प्रस्तुत करने वाले सूत्र आदि।
जैसे- वैदिक परम्परा में विशिष्ट व्यक्तियों का वर्णन पुराण साहित्य में है वैसे ही जैन परम्परा में महापुरुषों का वर्णन गण्डिकानुयोग में समाहित है।117
विशेषावश्यकभाष्य में निक्षेप पद्धति की अपेक्षा अनुयोग के सात भेद वर्णित हैं118- 1. नाम 2. स्थापना 3. द्रव्य 4. क्षेत्र 5. काल 6. वचन और 7. भाव।
1. नाम अनुयोग - वीर आदि नामों का अनुयोग/व्याख्या करना अथवा किसी वस्तु का 'अनुयोग' नाम रखना, वह नामानुयोग है।
2. स्थापना अनुयोग - स्थापना का व्याख्यान करना अथवा व्याख्या करते समय आचार्य आदि की काष्ठ आदि में स्थापना करना अथवा अनुयोगाचार्य की लेप्यकर्म आदि में तदाकार स्थापना करना स्थापना अनुयोग है।
3. द्रव्य अनुयोग - द्रव्य पदार्थों की व्याख्या करना अथवा द्रव्य का पर्याय के साथ योग्य सम्बन्ध करना द्रव्य अनुयोग है। ___4. क्षेत्र अनुयोग - जो सभी द्रव्यों को स्थान देता है वह क्षेत्र कहलाता है। आकाश मूलत: द्रव्य ही है, किन्तु द्रव्यों को अवगाहना देने की अपेक्षा क्षेत्र कहलाता है। इस प्रकार जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में जम्बूद्वीप क्षेत्र का व्याख्यान है, वह क्षेत्र अनुयोग है।