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198...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में
उसके बाद एक आसन पर स्थापनाचार्य की स्थापना करें और दूसरे आसन पर गुरु स्वयं बैठें। फिर पद दाता गुरु चन्दन और कपूर से पूजित अक्ष (स्थापनाचार्य) को सूरिमन्त्र से अभिमन्त्रित करें। उसके पश्चात गुरु आसन से उठकर पदग्राही शिष्य को अपनी बायीं ओर बिठाएं।
वासदान तत्पश्चात पदग्राही शिष्य खमासमणसूत्र पूर्वक वन्दन कर कहें- "इच्छाकारेण तुम्भे अम्हं दव्व-गुण- पज्जवेहिं अणुओग अणुजाणावणत्थं वासे खिवेह "
हे भगवन्! आपकी इच्छा हो तो मुझ पर द्रव्य, गुण, पर्यायों द्वारा अनुयोग के ज्ञापनार्थ (सूत्रार्थ का विस्तृत प्रतिपादन करने की अनुमति प्राप्त करने निमित्त) वासचूर्ण का निक्षेप करें। उसके बाद गुरु-शिष्य के मस्तक पर वासचूर्ण डालें और परमेष्ठी आदि मुद्राओं के द्वारा उसके शरीर की रक्षा करें। देववन्दन उसके पश्चात शिष्य एक खमासमण देकर बोलें" इच्छाकारेण तुम्मे अम्हं दव्व गुण- पज्जवेहिं चउव्विह अणुओग अणुजाणावणत्थं चेइआई वंदावेह" - हे भगवन् । आपकी इच्छा हो तो आप मुझे द्रव्य, गुण, पर्यायों द्वारा चतुर्विध अनुयोग के ज्ञापनार्थ चैत्य आदि का वन्दन करवाइए। तब गुरु-शिष्य को अपनी बायीं ओर बिठाकर, जिनमें उच्चारण एवं अक्षर क्रमशः बढ़ते हुए हों, ऐसी चार स्तुतियों के द्वारा संघ सहित देववन्दन करें। यहाँ पूर्ववत शान्तिनाथ, शान्तिदेवता आदि ग्यारह की आराधना निमित्त एक-एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग कर उनकी स्तुतियाँ बोलें। शासनदेवता के कायोत्सर्ग में चार लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करें, फिर शासनदेवता की स्तुति बोलकर प्रकट में लोगस्ससूत्र बोलें। इस प्रकार कुल अठारह स्तुतियां कहें। फिर तीन बार नमस्कारमन्त्र कहकर शक्रस्तव, पंचपरमेष्ठिस्तव एवं जयवीयरायसूत्र बोलें।
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नन्दी श्रवण तदनन्तर पदग्राही शिष्य मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन कर द्वादशावर्त्तवन्दन पूर्वक कहें - "इच्छाकारेण तुम्भे अम्हं दव्व-गुण- पज्जवेहिं अणुओग अणुजाणावणत्थं सत्तसइय नंदिकड्डावणत्थं काउस्सग्गं करावेह" - हे भगवन्! आपकी इच्छा हो तो द्रव्य-गुण- पर्यायों के द्वारा अनुयोग के ज्ञापनार्थ एवं सात सौ श्लोक परिमाण नन्दीसूत्र सुनने (अनुकरण करने) के लिए कायोत्सर्ग करवाएं। उसके बाद गुरु और शिष्य दोनों ही
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