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204...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में
इस गच्छ के श्रेष्ठ मुनिजन तुम्हारे द्वारा कभी भी अपमानित नहीं होने चाहिए क्योंकि ये मुनिगण ही तुम्हारे द्वारा उठाए गये भार को वहन करने में सबसे अधिक सहायक होंगे।
जिस प्रकार विन्ध्यगिरि पर्वत समीपवर्ती एवं दूरवर्ती वन में वास करने वाले हस्तिसमूह के आधार भाव को अभेद रूप से वहन करता है उसी प्रकार तुम भी स्वजन हो या अन्यजन सभी मुनियों के लिए समान रूप से आधारभूत होना।
तुम्हारे निश्रावर्ती साधुगण तुमसे किसी तरह का विपरीत वर्तन रखते हों, तब भी तुम उनके प्रति प्रिय व्यवहार ही रखना, किञ्चिदमात्र भी अप्रिय व्यवहार नहीं करना। गच्छ-सम्बन्धी कार्यों का निष्पक्ष होकर निर्वाह करना। इससे तुम्हारी कीर्ति इस लोक में आभूषण रूप हो जाएगी।
कदाच अविनीत शिष्य पर अनुशासन रखते हुए वह तुम पर क्रोधित भी हो जाये, फिर भी तुम परिणाम शुद्धि को मत छोड़ना, क्योंकि सर्वत्र परिणामशुद्धि का ही रहस्य है।
हे सुन्दर! जिस प्रकार विशाल परिवार के साथ रहते हुए परस्पर वादविवाद होना सम्भव है, किन्तु उत्तम मालिक उस स्थिति में भी समान रूप से अनुवर्तन करते हुए सभी के दिलों को जीत लेता है, तुम भी उत्तम मालिक की तरह सभी मुनियों के हृदयस्थ बनना।
आचार्य इहलौकिक और पारलौकिक दो तरह के होते हैं। जो इहलौकिक सुख के लिए संघ संचालन करते हैं वे सार रहित हैं। तुम भवान्तर सुख प्राप्ति में निमित्त पारलौकिक आचार्य बनना ।
जो दुष्ट अश्व पर निग्रह करता है वह सारथी कहलाता है। तुम भी दुष्ट शिष्यों पर भद्र वचन के द्वारा निग्रह कर सच्चे सारथी बनना। जो अद्भुत प्रभाव छोड़े वह कुशल नहीं होता, परन्तु गणधर पद पर रहते हुए सभी प्रकार के उपदेश प्रतिपादन में सक्षम हो वही कुशल कहा गया है।
जिन वचनों के द्वारा जिनशासन की उन्नति और मैत्री भाव का विस्तार हो, तदनुसार ही उपदेश कार्य करना तथा तुम स्वयं भी यथोचित कर्त्तव्य का पालन
करना।