Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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आचार्य पदस्थापना विधि का शास्त्रीय स्वरूप... ..209
आचार्य को हित शिक्षा दें, इन सभी का उल्लेख किया गया है।
यदि इस विधि का गवेषणात्मक दृष्टि से मनन किया जाए तो ज्ञात होता है कि भावी आचार्य का विभिन्न प्रकार की औषधियों, गन्धचूर्णों एवं पवित्र मिट्टियों से अभिषेक करना, अक्षतों द्वारा उनकी परीक्षा करना, छत्र-चामर आदि वस्तुएँ भेंट रूप देना आदि के उल्लेख इसी ग्रन्थ में प्राप्त होते हैं। सामाचारी आदि ग्रन्थों में मौखिक परम्परा से आगत मन्त्र को ही सुनाने का निर्देश है जबकि इसमें पुस्तक संकलित मन्त्र देने का भी वर्णन है ।
इसमें पदानुज्ञा के निमित्त चैत्यवन्दन, कायोत्सर्ग, वन्दन, वासदान आदि का उल्लेख तो है, किन्तु उसका स्पष्ट स्वरूप मालूम नहीं होता है। जैसे चैत्यवन्दन कितनी स्तुतियाँ पूर्वक किया जाए, किन देवी-देवताओं की आराधना निमित्त कितने कायोत्सर्ग करें, लघु नन्दी या बृहत नन्दी में से कौनसा नन्दीपाठ सुनाएं आदि का स्पष्टीकरण नहीं है।
अतः कहना होगा कि आचार्य पादलिप्तसूरि ने आचार्यपदानुज्ञा - विधि तत्कालीन सामाचारी के अनुसार कही है और इसे 'आचार्याभिषेक विधि' ऐसा अन्वर्थक नाम दिया है।
पदप्रदाता संबंधी - आचार्य पददान की समग्र विधि कौन सम्पन्न करता है ? इस विषय में सामाचारी संग्रह में गुरु अथवा वाचनाचार्य का नाम निर्देश किया गया है। तिलकाचार्य में वाचनाचार्य का उल्लेख है तथा शेष ग्रन्थों में 'गुरु' शब्द का नामोल्लेख हुआ है।
प्रत्याख्यान संबंधी पदस्थापना के दिन नूतन आचार्य कौनसे तप का प्रत्याख्यान करता है? इस सम्बन्ध में मतान्तर हैं । सामाचारीप्रकरण के अनुसार गुरु और शिष्य दोनों ही आयंबिल आदि का प्रत्याख्यान करते हैं। तिलकाचार्य सामाचारी के अनुसार नूतन आचार्य आयंबिल करते हैं। सुबोधासामाचारी के अभिप्राय से भी आयंबिल आदि का तप करते हैं। विधिमार्गप्रपा के निर्देशानुसार आयंबिल अथवा उपवास करते हैं। प्राय: इन ग्रन्थों में 'निरुद्ध' शब्द का उल्लेख है इससे आयंबिल आदि तप का परिज्ञान तो हो जाता है किन्तु किसी एक तप विशेष का निश्चय नहीं हो पाता ।
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दिगम्बर दिगम्बर परम्परा में प्रचलित आचार्य पदस्थापना विधि इस प्रकार है169_