Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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190...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में
सामान्यतः आचार्य पदस्थ मुनियों में भी श्रुतज्ञान आदि एवं क्षयोपशम आदि की अपेक्षा तरतमता होना सम्भव है। इसी कारण अधिकारी भेद किये गये हैं। मूलतः अनुयोगाचार्य ही अनुयोग के व्याख्याता होते हैं। आगम ग्रन्थों में अनुयोग के प्रकार
जैन आगम साहित्य में अनुयोग के विविध भेद-प्रभेद हैं। अनुयोग का सामान्य अर्थ व्याख्या है। व्याख्येय वस्तु के आधार पर अनुयोग के चार भेद किये गये हैं, जो आज भी बहुविश्रुत हैं। श्वेताम्बर मान्यतानुसार उनका क्रम यह है - चरणानुयोग, धर्मकथानुयोग, गणितानुयोग और द्रव्यानुयोग | 112 दिगम्बर मतानुसार चतुर्विध अनुयोगों का क्रमांकन इस प्रकार है - प्रथमानुयोग, चरणानुयोग, करणानुयोग और द्रव्यानुयोग | 1 13
1. चरणानुयोग चरण अर्थात चारित्र। गृहस्थ और मुनियों के व्रत, तप, चारित्र आदि से सम्बन्धित कथन करने वाले सूत्र चरणानुयोग कहलाते हैं। जैसे - श्रावकप्रज्ञप्ति, उपासकाध्ययन आदि में श्रावकधर्म और पंचवस्तुक, पिण्डनिर्युक्ति, मूलाचार आदि में साधु धर्म मुख्य रूप से कहा गया है, वह चरणानुयोग है।
2. धर्मकथानुयोग - धर्मकथा यानी धर्म सम्बन्धी कथा। जिन ग्रन्थों में अहिंसा आदि धर्म के स्वरूप का वर्णन हो अथवा महापुरुषों के जीवन चरित्र का वर्णन हो, वह धर्मकथानुयोग कहलाता है। दिगम्बर मत में इसे प्रथमानुयोग कहा है।
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3. गणितानुयोग गणित के माध्यम से काल, माप, संख्या आदि का वर्णन करने वाले सूत्र गणितानुयोग कहलाते हैं जैसे - सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति आदि। दिगम्बर मत में इसे करणानुयोग माना गया है।
4. द्रव्यानुयोग - जीव- अजीव, पुण्य-पाप बन्ध-मोक्ष आदि की चर्चा करने वाले ग्रन्थ द्रव्यानुयोग कहलाते हैं जैसे- भगवतीसूत्र, प्रज्ञापना, दृष्टिवाद आदि । 114
यहाँ श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में अनुयोगों के नाम और स्वरूप को को लेकर कथंचिद अन्तर देखा जाता है किन्तु भाव की दृष्टि से समानता है। नन्दीसूत्र में अनुयोग के दो विभाग निरूपित हैं -
1. मूल प्रथमानुयोग 2. गण्डिकानुयोग।।
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