Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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आचार्य पदस्थापना विधि का शास्त्रीय स्वरूप...189 3. युगप्रधानाचार्य द्वारा समग्रता से श्रुत ग्रहण करने वाला जैसेस्थूलिभद्रस्वामी।
इस वर्णन से पूर्व कथन का स्पष्ट समर्थन हो जाता है कि अनुयोग के प्रतिपादक आचार्य ही होते हैं।
आचार्य जिनभद्रगणि ने अन्य तीन प्रकार से भी अनुयोग के अधिकारी बताये हैं जो निम्न हैं109____ 1. भाषक - अनुयोगाचार्य शिष्य को जितना अर्थ समझाते हैं, उसकी अपेक्षा कुछ कम जो दूसरों को बता सकता है वह भाषक कहलाता है।
2. विभाषक - आचार्य जितना पढ़ाते हैं उतना ही दूसरों को बता सकने में जो समर्थ होता है, वह विभाषक कहलाता है।
3. भाष्यकार (वार्तिककार) - जो अपने प्रज्ञा बल के द्वारा अनुयोगाचार्य से प्राप्त श्रुत के अर्थ को अधिक विस्तार के साथ कह सकने में समर्थ होता है, वह भाष्यकार कहलाता है।
इससे भी पूर्व मत की सिद्धि हो जाती है। दूसरे मत के अनुसार भाषा, विभाषा, वार्तिक आदि अनुयोग के एकार्थवाची होने पर भी उनमें प्रतिपादन की दृष्टि से भेद है। इस कारण अधिकारियों में भी भेद हो जाता है। यद्यपि अनुयोगाचार्य सभी से विशिष्ट होते हैं। ___ भाष्यकार ने उक्त विषय को निम्न छह दृष्टान्तों से समझाने का भी प्रयास किया है - 1. काष्ठ 2. पुस्त (लेप्य) 3. चित्र 4. श्रीगृहिक 5. पौण्ड्र (कमल) और 6. पथप्रदर्शक।110
जैसे एक व्यक्ति काष्ठपट्टिका को सामान्य आकार देता है। दूसरा उसके भागों को सज्जित करता है और तीसरा व्यक्ति सर्व अंगोपांगों का निर्माण कर उसे एक आकर्षक कृति के रूप में प्रस्तुत करता है। यहाँ काष्ठ के समान सूत्र है। भाषक प्रथम व्यक्ति के समान है, दूसरा विभाषक दूसरे व्यक्ति के समान है
और वार्तिककार तीसरे व्यक्ति के समान है। अनुयोगाचार्य इनसे भी विशिष्ट होते हैं।111
उपर्युक्त वर्णन से ज्ञात होता है कि सूत्रों के अनुरूप अर्थ करना अथवा सूत्र के विविध अर्थों का प्रतिपादन करना अथवा सूत्रार्थ को समग्रता से समझाना अनुयोग है और अनुयोग के प्रतिपादन का अधिकार आचार्य को ही होता है।