Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 245
________________ आचार्य पदस्थापना विधि का शास्त्रीय स्वरूप...187 पंचवस्तुक, सामाचारी संग्रह, विधिमार्गप्रपा आदि के उल्लेखानुसार आचार्य पदस्थ मुनि को पद दान के दिन अनुयोग की अनुज्ञा दी जाती है- इस अपेक्षा से आचार्य ही अनुयोगाचार्य के अधिकारी बनते हैं। आचार्य हरिभद्रसूरि ने 'अनुयोगाचार्य' इस नाम से आचार्य की पदस्थापना विधि का निरूपण किया है। इस प्रकार अनुयोगाचार्य के सम्बन्ध में द्विविध मत हैं - 1. अनुयोगाचार्य एक स्वतन्त्र पद है और 2. आचार्य ही अनुयोगाचार्य कहलाता है। उक्त दोनों ही अवधारणाएँ अपनी-अपनी दृष्टि से उचित हैं। अनुयोग शब्द का अर्थ अनुयोग शब्द 'अनु' उपसर्ग और 'योग' शब्द के संयोग से निर्मित है। अनु' उपसर्ग अनुकूल अर्थवाचक है अत: सूत्र के साथ अनुकूल, अनुरूप या सुसंगत योग अनुयोग है अथवा सूत्र के अनुरूप अर्थ की योजना करना अनुयोग है। बृहत्कल्प के अनुसार अनु का अर्थ पश्चाद् भाव या स्तोक है। उस दृष्टि से अर्थ के पश्चात होने वाला या स्तोक सूत्र के साथ जो योग है, वह अनुयोग है। अनुयोग की विभिन्न परिभाषाएँ ___प्राचीन साहित्य में ‘अनुयोग' शब्द पर चिन्तन करते हुए लिखा गया है - 'अणुओयणमणुयोगो' अनुयोजन करना अनुयोग है। ___ यहाँ अनुयोजन का अर्थ एक-दूसरे को जोड़ना एवं संयुक्त करना है। इसी अर्थ का स्पष्टीकरण करते हुए टीकाकार ने लिखा है जो भगवत कथन से आगम वचनों को संयोजित करता है, वह अनुयोग है।100 अभिधानराजेन्द्रकोश में कहा गया है कि लघु सूत्र के साथ महान अर्थ का योग करना अनुयोग है।101 आवश्यकनियुक्ति के अनुसार सूत्र के साथ अर्थ की जो अनुकूल योजना की जाती है, उसका नाम अनुयोग है अथवा सूत्र का अपने अभिधेय में जो योग होता है, वह अनुयोग है।102 आचार्य हरिभद्र, आचार्य अभयदेव एवं आचार्य शान्तिचन्द्र ने भी उपर्युक्त अर्थों का समर्थन किया है।103 आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने भी अनुयोग की यही परिभाषाएँ बताई है। जैसे- सूत्र के साथ अर्थ की योजना करना अनुयोग है अथवा सूत्र के

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