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आचार्य पदस्थापना विधि का शास्त्रीय स्वरूप...193 13. निद्राजयी - जिसने निद्रा को अल्प कर दिया हो। 14. मध्यस्थ
निष्पक्ष स्वभावी हो। 15. देशज्ञ
सभी देशों के नियम-विधियों से परिचित हों। 16. कालज्ञ
समय या परिस्थिति का सम्यक मूल्यांकन करने
वाले हों। 17. भावज्ञ
जिज्ञासुओं के अभिप्राय को जानने वाले हों। 18. आसन्नलब्धप्रतिम - प्रतिवादियों के प्रश्नों का तत्काल उत्तर देने में
समर्थ हों। 19. नानाविधदेश भाषज्ञ- अनेक देशों की भाषा के ज्ञाता हो। 20. आचारसम्पन्न - ज्ञान आदि पांच आचारों में सुस्थित हों। 21. सूत्रविधिज्ञ - सूत्र-विधि के ज्ञाता हो। 22. अर्थविधिज्ञ - अर्थ करने की विधि में योग्य हों। 23. तदुभयविधिज्ञ - सूत्र एवं अर्थ दोनों में कशल हों। 24. आहरण निपुण - दृष्टान्त-उदाहरण आदि कहने में सुज्ञ हों। 25. हेतु निपुण कारक आदि हेतुओं में योग्य हों। 26. उपनयनिपुण किसी पदार्थ विशेष का उपसंहार करने में
दक्ष हो। 27. नयनिपुण वस्तु के अल्पांश का शुद्ध रूप से कथन करने
वाले नैगम आदि नयों के अर्थ घटन में
सक्षम हों। 28. ग्राहणाकुशल सूत्रार्थ को ग्रहण करने में कुशल हों। 29. स्वसमयवित स्व-सिद्धान्त को जानने वाले हों। 30. परसमयवित अन्य दर्शन के सिद्धान्तों के सम्यक ज्ञाता हो। 31. गम्भीर
स्वभाव से गम्भीर हों। 32. दीप्तिमान
ओजस्वी व्यक्तित्ववान हो। 33. शिव
कल्याणकारक हो। 34. सोम
सौम्य दृष्टि वाले हों। 35. गुणशतकलित - मूलगुण, उत्तरगुण आदि अनेक गुणों से
युक्त हों। 36. प्रवचनयुक्त
आगमज्ञ हो।
नपण
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