Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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184...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में
कदाचित ऐसा हो सकता है कि मन्त्र आदि के बल से अग्नि शरीर को न जला पाएं, आशीविष सर्प कुपित होने पर भी न काटे और यह भी सम्भव है कि हलाहल विष न भी मारे, किन्तु गुरु की आशातना से मोक्ष सम्भव नहीं है।
दशवैकालिक सूत्र के रचनाकार आचार्य की गरिमा का यथार्थ स्वरूप प्रस्तुत करते हुए यह भी कहते हैं कि गुरु की आशातना पर्वत को सिर से भेदन करने, सोए हुये सिंह को जगाने तथा भाले की नोक पर हथेली से प्रहार करने के समान है। सम्भव है कोई अपने सिर के बल से पर्वत को भेद के बल डाले, कदाचित कुपित हुआ सिंह जगाने वालों का भक्षण न करे, किन्तु गुरु की अवहेलना से मोक्ष प्राप्ति कदापि संभव नहीं है ।
वस्तुतः गुरु की आशातना करने वाला अपना ही अहित करता है। इहलोक-परलोक दोनों में अत्यन्त दुःख पाता है इसलिए उत्तम शिष्य को सदैव गुरु की सेवा-शुश्रुषा एवं भक्ति करके उन्हें प्रसन्न रखने का प्रयत्न करना चाहिए। आचार्य की चरण प्रमार्जन विधि
चरण प्रमार्जन आचार्य का एक अतिशय है। आचार्य जब भी बाहर से समागत हो, उनके चरणयुग्म का प्रमार्जन ( रजकणों को दूर करना) आवश्यक है। व्यवहारभाष्य के मतानुसार गच्छ में यदि आचार्य का चरण प्रमार्जन मुझे करना है ऐसा अभिग्रहधारी साधु हो तो वही करे, अन्यथा कोई भी साधु आचार्य के निश्रागत रजोहरण से उनके चरणों का प्रमार्जन कर सकता है। यदि किसी के द्वारा काम में नहीं लिया हुआ पादप्रोंछन हो तो उसी के द्वारा यह कार्य करे। निष्कारण चरण प्रमार्जन न करने पर तथा किसी के द्वारा व्यक्त पादप्रोछन से प्रमार्जन करने पर मासलघु प्रायश्चित्त आता है। 95 आचार्य द्वारा भिक्षार्थ न जाने के हेतु
आचार्य का यह भी एक अतिशय है कि वे भिक्षाटन नहीं करते हैं । जैन व्याख्याकारों ने इस तथ्य को सुन्दर ढंग से उद्घाटित करते हुए निर्दिष्ट किया है कि आचार्य गच्छ में आबालवृद्ध के आधार होते हैं। उनका सार्वकालिक प्रभुत्व होता है।
जैसे ग्वाला प्रातः काल में चराने हेतु ले जाते समय, मध्याह्न काल में छाया में बैठी हुई और सायंकाल घर लौटती हुई गायों का अवलोकन करता है वैसे ही आचार्य प्रातः, मध्याह्न और विकाल वेला में गण का निरीक्षण करते हैं ।