Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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166...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में उनके मलिन वस्त्र आदि उपकरणों का यथोचित प्रक्षालन करना।
4. प्रशंसन - आचार्य गम्भीर, मृदु, कृतज्ञ, तपस्वी, बहुश्रुती आदि जिन गुणों से युक्त हो, उन विद्यमान गुणों की प्रशंसा करना। सद्गुणों का कीर्तन करने से महान निर्जरा होती है, अवर्णवादियों का प्रतिघात होता है तथा ज्ञानी आचार्य के बारे में सुनकर राजा, मन्त्री, विद्वान आदि विशिष्ट व्यक्ति आकृष्ट होते हैं और आचार्य के पास उनका आगमन होता है। वे साधु धर्म या श्रावक धर्म भी स्वीकार करते हैं।
5. शौच - आचार्य के हाथ, पाँव, मुख आदि को प्रक्षालित कर शुद्ध रखना। मुख-दांत को धोने से जठराग्नि प्रबल होती है, हाथ एवं पैर धोने से बुद्धि और वाणी की पटुता बढ़ती है तथा शरीर का सौन्दर्य वृद्धिंगत होता है।
भाष्यकार के अनुसार ये अतिशय अपवाद रूप हैं। यदि आचार्य दृढ़ संहननी, निर्मल देही, तेजस्वी एवं यशस्वी हों तो उन्हें उपर्युक्त अतिशयों का आसेवन नहीं करना चाहिए। ___ आचार्य मधुकर मुनि के उल्लेखानुसार अन्य साधुओं को सामान्य आहार आदि से जीवन का निर्वाह करना चाहिए किन्तु रोगादि कारणों से सामान्य भिक्षु भी उक्त आचरणों को स्वीकार कर सकता है।62 .
पूर्व निर्दिष्ट अतिशयों का तात्पर्य यह है कि
1. आचार्य उपाश्रय के भीतर भी पांव का प्रमार्जन कर शुद्धि कर सकते हैं।
2. गाँव के बाहर शुद्ध स्थण्डिल होते हुए भी उपाश्रय के समीपवर्ती स्थण्डिल में मल त्याग कर सकते हैं।
3. गोचरी आदि अनेक सामूहिक कार्य या वस्त्र प्रक्षालन आदि सेवा के कार्य इच्छा हो तो कर सकते हैं अन्यथा शक्ति होते हुए भी अन्य से करवा सकते हैं।
4-5. विद्या मन्त्र आदि के पुनरावर्तन हेतु अथवा अन्य किन्हीं कारणों से वे उपाश्रय के किसी एकान्त भाग में या उपाश्रय से बाहर अकेले एक या दो दिन रह सकते हैं। आगमों में इन विद्या मन्त्रों का उपयोग गृहस्थ हेतु करने का निषेध है किन्तु साधु-साध्वी के लिए अपवाद स्थिति में इनका प्रयोग किया जा सकता है।