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160...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में __जैसे लौकिक जन चक्रवर्ती की आज्ञा की आराधना करते हैं वैसे ही इंगियागार सम्पन्न और गुरु अभिप्राय के अनुकूल वर्तन करने वाले शिष्य गुरु सदृश आचार्य की सदा आराधना करते हैं।48 ___ जैसे समुद्र मीन-मकरों से संक्षुब्ध नहीं होता वैसे ही आचार्य भी परवादियों से क्षुब्ध नहीं होता, वह गण का संग्रहण करता हुआ क्लान्त नहीं होता।49 . ___जिस प्रकार विशाल पद्म सरोवर सदैव पक्षियों व तृषित जनों से पूरित रहता है उसी प्रकार आचार्य के पास भी सदा जनसंकुलता रहती है।50
भाष्यकार संघदासगणि ने आचार्य को श्रीगृह की उपमा देते हुए कहा है कि जैसे तोसलिक नृप ने श्रीगृह में मणि प्रतिमाओं की रक्षा की थी, वैसे ही आचार्य की रक्षा (पूजा) करनी चाहिए। गुरु की पूजा करने से इहलोक और परलोक में महान गुणों की प्राप्ति होती है अर्थात विपुल श्रुतलाभ और मोक्षमार्ग की आराधना होती है।51
आचार्य की महिमा दर्शाते हुए यह भी कहा गया है कि जैसे अहिताग्नि ब्राह्मण विविध आहुति और मन्त्र पदों से अभिषिक्त अग्नि को नमस्कार करता है वैसे ही शिष्य अनन्त ज्ञान सम्पन्न होते हुए भी आचार्य की विनय पूर्वक सेवा करें।52
जैसे अहिताग्नि ब्राह्मण अग्नि की शुश्रुषा करता हुआ जागरूक रहता है, वैसे ही जो शिष्य आचार्य की शुश्रुषा करता हुआ जागरूक रहता है। आचार्य के इंगित को जानकर उनके इच्छानुकूल वर्तन करता है, वह पूज्य है।53
__आचार्य के प्रभुत्व के विषय में यह भी कहा गया है कि जिस प्रकार सूर्योदय के साथ ही अन्धकार एवं शीत दोनों तिरोहित हो जाते हैं उसी प्रकार आचार्य की उपस्थिति में अज्ञानरूपी अन्धकार एवं मोहरूपी शीत को गायब होने में समय नहीं लगता। ___ इस तरह आचार्य सूर्य सम तेजस्वी, इन्द्र सम ऋद्धिधारी, चन्द्र सम शोभायमान, पद्म सरोवर की भांति जन-सामान्य से परिवृत्त, अभिषिक्त अग्नि के समान पूज्य होते हैं।
आचार्य का हृदय इतना अकम्प और स्थिर होता है कि उन्हें चक्रवर्ती के शीतगृह की उपमा दी गयी है। चक्रवर्ती का वातानुकूलित भवन इस प्रकार