Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
162...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में
आचार्य स्वच्छन्द व्यक्तियों को अनुशासित करते हैं। जो अनुशासित हैं उनमें गण के प्रति महान श्रद्धा समुत्पन्न करते हैं। वे आत्मोत्साह से शिष्यों आदि का संग्रहण कर यथाशक्ति गण की वृद्धि करते हैं।54 उनके वचन आदेय, शरीर के अवयव परिपूर्ण और वे आहार- वस्त्र आदि की लब्धि से सम्पन्न होते हैं। इससे शिष्यों की अभिवृद्धि होती है और लोगों में पूज्य बनते हैं।5।।
दशवैकालिकसूत्र में कहा गया है कि जैसे पिता अपनी कन्या को यत्न पूर्वक योग्य कुल में स्थापित (प्रेषित) करता है वैसे ही आचार्य अपने शिष्यों को योग्य मार्ग में स्थापित करते हैं। इतना ही नहीं, माननीय, तपस्वी, जितेन्द्रिय और सत्यरत आचार्य का सम्मान करने वाला शिष्य भी पूजनीय बन जाता है।56
ओघनिर्यक्ति के अभिमतानुसार आचार्य के अनुकूल आहार की गवेषणा करने मात्र से अनेक लाभ होते हैं जैसे सूत्र- अर्थ का सुखपूर्वक स्थिरीकरण होता है, विनय सामाचारी का पालन होता है, नवदीक्षित के मन में आचार्य के प्रति बहुमान के भाव पैदा होते हैं, दाता के चित्त में भी श्रद्धाभाव की वृद्धि होती है, आचार्य का दैहिक बल एवं बुद्धिबल बढ़ने से शासन प्रभावना के उत्तमोत्तम कार्य सम्पन्न होते हैं तथा शिष्यों के कर्मों की महान निर्जरा होती है।57 इस तरह आचार्य सदैव स्व-पर उपकारी बनते हैं। __ व्यवहारभाष्य में कहा गया है कि आचार्य (गुरु) की अनुकम्पा से शक्ति सम्पन्न गच्छ अनुगृहीत होता है और गच्छ की अनुकम्पा द्वारा गुरु तीर्थ की अविभाज्यता में निमित्तभूत बनते हैं।
आचार्य स्वयं स्थिर स्वभावी होते हैं अत: अपने आचरण-बल से संघस्थ मुनियों को आचार्य आदि दशविध वैयावृत्य में नियोजित कर स्व-पर का निस्तार करते हैं।58
आचार्य भव रूपी व्याधि को दूर करने में साक्षात चिकित्सक के समान कहे गये हैं अत: उनका बहुमान करने से तीर्थङ्कर पुण्य प्रकृति का उपार्जन और मोक्ष की प्राप्ति होती है।59
आचार्य को भाव पूर्वक किया गया नमस्कार बोधिलाभ (सम्यक्त्व) कारक एवं सर्व पापों का प्रणाशक होता है। ___ इस प्रकार अनेक कारणों से इस पद की सार्थकता एवं आवश्यकता सिद्ध होती है।