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150...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में सम्यक जानकार ऐसे (7+7+7+7+8 = 36) गुण के धारक हैं।
6.) आठ ज्ञानाचार, आठ दर्शनाचार, आठ चारित्राचार, आठ वादी गुण, चार बुद्धि के धारक, ऐसे (8+8+8+8+4 = 36) गुण के पालक हैं। ___7.) आठ कर्म, आठ अष्टांगयोग, आठ महासिद्धि, आठ योगदृष्टि, चार
अनुयोग के ज्ञाता होने से (8+8+8+8+4 = 36) गुण के धारक हैं। ___8.) नौ तत्त्व, नौ ब्रह्मचर्य गुप्ति, नौ निदान, नौ कल्पी विहार के ज्ञाता एवं पालक, ऐसे (9+9+9+9 = 36) गुणधारी हैं।
___9.) दस असंवर, दस संक्लेश, दस उपघात, छह हास्यादि षट्क के ज्ञाता, ऐसे (10+10+10+6 = 36) गुणधारक हैं।
10.) दस सामाचारी व दस चित्तसमाधि के पालक एवं सोलह कषाय के त्यागी होने से (10+10+16 = 36) गणधारी हैं।
11.) दस प्रतिसेवा, दस आलोचना दोष, चार विनयसमाधि, चार श्रुतसमाधि, चार तपसमाधि, चार आचार समाधि के ज्ञाता, ऐसे (10+10+4+4+4+4 = 36) गुण के धारक हैं। ___ 12.) दस वैयावृत्य, दस विनय, क्षमा आदि दस धर्म के पालक, छह अकल्प के ज्ञाता, ऐसे (10+10+10+6 = 36) गुणधारक हैं।
13.) दस रुचि, बारह अंग, बारह उपांग, दो प्रकार की शिक्षा में निष्णात, ऐसे (10+12+12+2 = 36) गुणधारक हैं।
14.) ग्यारह उपासक प्रतिमा, बारह व्रत, तेरह क्रिया स्थान के ज्ञाता, ऐसे (11+12+13 = 36) गुण पालक हैं।
15.) बारह उपयोग, दस प्रायश्चित्त, चौदह उपकरण के परिज्ञाता होने से (12+10+14 = 36) गुणधारी हैं।
16.) बारह तप, बारह भिक्षु प्रतिमा, बारह भावना के अनुपालक होने से (12+12+12 = 36) गुणधारी हैं।
17.) चौदह गुणस्थान, चौदह प्रतिरूपादि गुण (प्रतिरूप, तेजस्वी, युगप्रधान, आगमवन्त, मधुरभाषी, गम्भीर, धैर्यवान, उपदेश कुशल, अपरिस्रावी, सौम्य, संग्रहशील, अभिग्रहमति, अविकथ्य, अचपल, प्रशान्तचित्त से युक्त) एवं आठ सूक्ष्म दृष्टि के ज्ञाता, ऐसे (14+14+8 = 36) 36 गुणधारी हैं।