Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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154... पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में
स्थानांगसूत्र में ज्ञान, उपशम आदि गुणों की अपेक्षा आचार्य के निम्न चार प्रकार निरूपित हैं33_
1. आमलक फल के समान कोई आचार्य आँवले के फल के समान अल्प मधुर होते हैं।
2. मुद्धीका फल के समान
होते हैं।
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3. क्षीरमधुर फल के समान मधुर होते हैं।
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कोई आचार्य दाख फल के समान मधुर
कोई आचार्य खीर के समान अधिक
4. मिश्री फल के समान कोई आचार्य मिश्री के समान बहुत अधिक मधुर होते हैं।
स्पष्ट है कि जैसे आँवले से अंगूर आदि फल उत्तरोत्तर मधुर या मीठे होते हैं उसी प्रकार आचार्यों के स्वभाव भी तरतमभाव से मधुर होते हैं ।
आचार्य के चार प्रकार करण्डक (मंजूषा ) की उपमा के आधार पर भी बतलाए गये हैं34_
(i) चर्मकार करण्डक के समान जैसे चर्मकार के करण्डक में चमड़े को छीलने-काटने आदि के उपकरणों और चमड़े के टुकड़े आदि के रखे रहने से वह असार या निकृष्ट कोटि का माना जाता है वैसे ही जो आचार्य क्ट्कायप्रज्ञापक गाथादि रूप अल्पसूत्र के धारक और क्रियाहीन होते हैं वे चाण्डाल करण्डक तुल्य होते हैं।
2. वेश्या करण्डक के समान - जैसे वेश्या का करण्डक दिखावटी स्वर्ण आभूषणों से युक्त होता है वैसे ही जो आचार्य अल्पज्ञानी होने पर भी बाह्याडम्बरों से जनसामान्य को प्रभावित करते हैं वे वेश्या करण्डक तुल्य होते हैं। 3. गृहपति करण्डक के समान जो आचार्य स्व-पर सिद्धान्त के ज्ञाता
और चारित्र सम्पन्न होते हैं वे गृहपति करण्डक तुल्य माने जाते हैं।
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4. राजा करण्डक के समान जैसे राजा का करण्डक मणि-माणक आदि बहुमूल्य रत्नों से भरा होता है वैसे ही जो आचार्य अपने पद के योग्य सर्व गुणों से सम्पन्न होते हैं वे राजा करण्डक तुल्य होते हैं।
उक्त चारों प्रकार के आचार्यों को करण्डक की भांति असार, अल्पसार, सारवान और सर्वश्रेष्ठ जानना चाहिए।
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