Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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कहा गया है कि साधु-साध्वी शय्या
128...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में
इसमें शय्या-संस्तारक की प्रतिलेखना के क्रम में भी उपाध्याय को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। इस पाठांश में कहा गया है कि साधु-साध्वी शय्यासंस्तारक हेतु आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर, गणी, गणधर, गणावच्छेदक, बाल, वृद्ध, शैक्ष, ग्लान एवं अतिथि साधु द्वारा स्वीकृत भूमि को छोड़कर उपाश्रय के अन्दर, मध्यस्थान या सम-विषम स्थान में, वातयुक्त या निर्वात स्थान में भूमि का बार-बार प्रतिलेखन एवं प्रमार्जन करें। उसके बाद अपने लिए युक्त एवं प्रासुक शय्या-संस्तारक बिछाएं।53
इसी तरह विहार करते समय आचार्य या उपाध्याय साथ हो तो किसी के द्वारा प्रश्न करने पर उसका प्रत्युत्तर शिष्य न दें, वह ईर्यासमिति का शोधक बना रहे। आचार्यादि ही यथोचित उत्तर दें। यहाँ भी उपाध्याय की श्रेष्ठता को दर्शाया गया है।54 ___ स्थानांगसूत्र में पृथक-पृथक विषयों के सन्दर्भ में 'उपाध्याय' का नाम निर्देश हुआ है। जैसे- देवलोक में उत्पन्न हुआ जीव शीघ्र ही तीन कारणों से मनुष्य लोक में आना चाहता है और आ भी सकता है। उसमें पहला कारण परम उपकारी आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर, गणी, गणधर, गणावच्छेदक को वन्दन, सत्कार एवं सम्मानादि करना बतलाया है।55
देव तीन कारणों से परितप्त होता है। उनमें पहला कारण यह प्रज्ञप्त है कि देव चिन्तन करता है - अहो! मैंने बल, वीर्य, पराक्रम, क्षेम, सुभिक्ष तथा आचार्य और उपाध्याय की उपस्थिति एवं नीरोग शरीर के होते हुए भी श्रुत का पर्याप्त अध्ययन नहीं किया।56
इस आगम में गुरु की अपेक्षा तीन प्रत्यनीक (प्रतिकूल व्यवहार करने वाले) बतलाए गये हैं - 1. आचार्य प्रत्यनीक 2. उपाध्याय प्रत्यनीक 3. स्थविर प्रत्यनीक/57 इसमें आचार्य एवं उपाध्याय के लिए सात संग्रह के हेतु कहे गये हैं।58 आचार्य उपाध्याय के पाँच-सात अतिशयों का वर्णन भी किया गया है।59
श्रमण नौ कारणों से सांभौगिक (समान धर्मी) साधु को विसांभौगिक60 करता हुआ आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है जैसे आचार्य प्रत्यनीक-आचार्य के प्रतिकूल आचरण करने वाले को, उपाध्याय प्रत्यनीक-उपाध्याय के प्रतिकूल आचरण करने वाले को इस प्रकार नौ स्थानों का निरूपण है।61