________________
उपाध्याय पदस्थापना विधि का वैज्ञानिक स्वरूप...135 दिया जाता है। विधिमार्गप्रपा के संकेतानुसार भी नूतन उपाध्याय को वर्धमानविद्या मण्डलपट्ट प्रदान किया जाता है। तिलकाचार्यसामाचारी एवं सुबोधासामाचारी में वर्धमानविद्या का उपदेश देते हैं, ऐसा वर्णन है।
इस प्रकार उपलब्ध ग्रन्थों में स्थापनाविधि, नन्दीश्रवण, आसनदान, मन्त्र साधना आदि के सम्बन्ध में किञ्चित् सामाचारी भेद हैं यद्यपि बहुत कुछ समरूपता भी है।
त्रिविध परम्परा की अपेक्षा- यदि जैन, वैदिक एवं बौद्ध परम्परा की अपेक्षा से तुलना की जाए तो कहा जा सकता है कि जैन धर्म की सभी उपशाखाओं में यह विधि निज आम्नाय के अनुसार आज भी प्रचलित है तथा परम्परागत प्राप्त विधि पूर्व में कह चुके हैं।
वैदिक परम्परा में उपाध्याय शब्द की व्याख्या तो मिलती है, किन्तु वहाँ उपाध्याय का अर्थ भिन्न है। मनुस्मृति के अनुसार जो द्रव्योपार्जन के उद्देश्य से वेद के एक देश अथवा अंग का अध्ययन करवाता है वह उपाध्याय है।93 भविष्यपुराण में भी उपाध्याय की यही परिभाषा कही गयी है। इसका फलितार्थ यह है कि जैन परम्परा में उपाध्याय एक मात्र स्व-पर कल्याण के ध्येय से आगम सिद्धान्तों का पठन-पाठन करवाते हैं जबकि वैदिक-परम्परा में उपाध्याय आजीविका का उपार्जन करने के लक्ष्य से शिष्यों को अध्ययन करवाते हैं। इस प्रकार जैन परम्परा के उपाध्याय एवं वैदिक परम्परा के उपाध्याय की अध्यापन दृष्टि में महत अन्तर है।
बौद्ध-परम्परा में शिक्षक या गुरु को आचार्य और उपाध्याय की संज्ञा दी गयी है। महावग्ग के अनुसार उपाध्याय वरिष्ठ अधिकारी होते हैं तथा वे नये भिक्षुओं को शास्त्र एवं सिद्धान्त का शिक्षण देते हैं जबकि आचार्य नूतन भिक्षुओं के आचरण की देख-रेख करते हैं।
बौद्ध ग्रन्थों में अध्यात्म गुरु के लिए भी 'उपज्झाय' शब्द का प्रयोग हुआ है। डॉ. मदनमोहनसिंह के मत से जो निकट चला गया हो, वह 'उपज्झाय' है। बौद्ध-साहित्य में गुरु के लिए विप्र, शास्त्रकर्ता शब्द भी व्यवहत है। इनके अतिरिक्त सुतंतक, विनयधर, मातिकाधर आदि शब्द भी वर्णित है। कुछ विद्वानों के अनुसार उक्त तीनों शब्द उपाध्याय के पर्याय है।94
विनयपिटक में उपाध्याय के शिष्य सम्बन्धी कुछ कर्त्तव्य कहे गये हैं यथा