Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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उपाध्याय पदस्थापना विधि का वैज्ञानिक स्वरूप...119 2. आचार्य और उपाध्याय उपाश्रय के अन्दर मल-मूत्र आदि का व्युत्सर्ग एवं अपान शुद्धि करे तो मर्यादा का उल्लंघन नहीं होता है।
3. आचार्य या उपाध्याय इच्छा हो तो किसी की सेवा करें और इच्छा न हो तो न करें, फिर भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं होता है। ___4. आचार्य या उपाध्याय उपाश्रय के अन्दर किसी विशेष कारण से एकदो रात अकेले भी रह सकते हैं, इससे मर्यादा का उल्लंघन नहीं होता है।
5. आचार्य या उपाध्याय किसी कारण विशेष से उपाश्रय के बाहर एकदो रात अकेले भी रहें तो मर्यादा का उल्लंघन नहीं होता है।40
स्थानांगसूत्र में सात अतिशयों का वर्णन हैं। उनमें पाँच अतिशय पूर्वोक्त ही हैं और अतिरिक्त दो अतिशय निम्न प्रकार हैं।1
1. उपकरणातिशय - आचार्य और उपाध्याय अन्य साधुओं की अपेक्षा उज्ज्वल पात्रादि रख सकते हैं, इससे मर्यादा का उल्लंघन नहीं होता है।
2. भक्तपानातिशय - आचार्य और उपाध्याय स्वास्थ्य एवं संयम के रक्षणार्थ विशिष्ट खान-पान कर सकते हैं।
व्यवहारभाष्य में उक्त दो अतिशयों के स्थान पर निम्न पाँच अतिशय प्रतिपादित हैं और वे आचार्य की अपेक्षा से कहे गये हैं।42
भक्त, पान, प्रक्षालन, प्रशंसा एवं हाथ-पैर की विशुद्धि - ये पाँच अतिशय हैं। आचार्य मधुकर मुनि जी ने इन अतिशयों का फलितार्थ यह बताया है कि सामान्य भिक्षु उपर्युक्त विषयों में इस प्रकार आचरण करें43
1. उपाश्रय में प्रवेश करते समय पैरों का प्रमार्जन आवश्यक हो तो उपाश्रय के बाहर ही करें।
. 2. शारीरिक अनुकूलता हो और योग्य स्थण्डिल भूमि उपलब्ध हो तो उपाश्रय में मल त्याग न करें।
3. गुरु आज्ञा होने पर या बिना कहे भी उन्हें सदा सेवा कार्यों में प्रयत्नशील रहना चाहिए, शेष समय में स्वाध्याय आदि करना चाहिए। ___4. गुरु के समीप या उनके दृष्टिगत स्थान पर ही शयन आदि करना चाहिए, किन्तु गीतार्थ भिक्षु अनुकूलतानुसार एवं आज्ञानुसार आचरण कर सकता है।
5. अतिशय की अपेक्षा आचार्य एवं उपाध्याय को एकाकी नहीं रहना चाहिए, शास्त्रकारों ने निषेध किया है।